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तत्त्वार्थश्लोक वार्तिकालंकारे
पांच, नौ, को आदि लेकर आठवे पांच पर्यंत शब्दोंका पूर्वभेद द्वंद्वसमासकर पीछे अन्य पदार्थ को प्रधान रखनेवाले बहुव्रीहि समासद्वारा निर्देश करलिया जाय अर्थात् चच नव च, द्वौ च, अष्टविंशतिश्च चत्वारश्च द्विचत्वारिंशच्च, द्वौ च, पंचच, यों विग्रहकर " पचनवद्वयष्टाविंशतिचतुद्विचत्वारिंशद्विपंच" वह पद बनालिया जाय । पुनः वे पांच, नौ, दो, अठ्ठाईस, चार, व्यालीस, दो और पांच ये भेद जिस उत्तर प्रकृतिबंध के हैं वह " पंचनवद्व्यष्टा विशंतिचतुद्विचत्वरिंशद्विपंचभेदा : " ऐसा बहुवचनान्त पाठ हैं तो पहिले "गोत्रान्तरायाः " इस बहुवचनान्त पदके साथ “भेदा येषां" यों निरुक्ति कर सामानाधिकरण्य विचार लिया जाता है । यहाँ कोई आक्षेप करता है कि पहिले सूत्र में जब आद्यपद कण्ठोक्त है, तो यहां द्वितीय पदका ग्रहण करना चाहिये, तभी इन भेदोंवाला दूसरे उत्तर प्रकृतिबंधका समीचीन प्रत्यय हो सकेगा, ग्रन्थकार कहते हैं कि यह तो न कहना। क्योंकि परिशेषन्यायसे द्वितीय शब्द की बिना कहे ही प्रकरण अनुसार सामर्थ्य से सिद्धि हो जाती है । पहिले सूत्रमें आद्यका कथन कह देने से यहां परिशेषन्याय अनुसार ही दूसरा उत्तर प्रकृतिबंध है, यह नियम से सिद्ध हो जाता है। आदिका मूल प्रकृतिबंध कहा जा चुका है तिस कारण यह दूसरा उत्तर प्रकृतिबंध ही समझा जायेगा । संक्षिप्त शब्दों करके अत्यधिक वाच्यार्य को कह रहे सूत्रकार विचारे सामर्थ्यसिद्ध पदोंको नहीं कहा करते है, परिद्धि को कह भी दिया जाय, फिर भी पुनरुक्तता दोष उठानेवाले कहां चुप बैठनेवाले हैं ? अत: हित, मित उच्चारण ही मुक्तिस्वरूप उमाका स्वामी है, समन्तभद्र है अकलंक है । श्रेष्ठ विद्याका आनन्द है । द्वंदके अन्तमें पडे हुये भेद शब्दकी प्रत्येक पदमे पिछली और समाप्ति कर दी जाती हैं "पंचभेदः, निवभेद: द्विभेदः, इत्यादि रूपसे सम्बंध करलेना चाहिये । सूत्रमें पडे हुये यथाक्रमका अर्थ सूत्रोक्त पदों की आनुपूर्वीका उल्लंघन नहीं करना है तिस कारण ज्ञानावरण कर्म पांच भेदोंवाला है और दर्शनावरण नौ भेदोंवाला है, इत्यादि रूपसे उक्त पदों के प्रयोग की परिपाटी करके चौथे और पांचवे सूत्रका सम्बध हुआ देखलेना चाहिये । इस ही सूत्रोक्त विषयको ग्रन्थकार अग्रिम वार्तिक द्वारा युक्तिपूर्वक कह रहे है ।
ते च पंचादिभेदाः स्युयथाक्रममितीरणात् कार्यप्रभेदतः साध्याः सद्भिः प्रकृतयोपराः ||१||
ज्ञानावरण आदिक कर्म यथाक्रमसे इन पांच आदि भेदोंवाले ह ऐसा इस
सूत्रमें कथन कर देनेसे सदागम प्रमाणवादी सज्जन विद्वानों करके कार्योंका प्रभेरद होरहा