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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
टेव जीव को सुख, दुःख का संवेदन कराना हैं । दर्शनमोहनीयको वान तत्त्व और अर्थोंका श्रद्धान नहीं होने देना है। चारित्रमोहनीयकर्मका स्वभाव संयमपरिणाम नहीं उपजने देना है । भवको धारण कराना आयुकर्म को टेव है । नारक आदि भावों या शरीर आदिको बनानेमे नाम कर्म की धुनि लगी रहती है, उंच, नीच स्थानों में वैसे अनुरूप आचरण कराना गोत्र कर्मका स्वभाव है। दान आदि मे विघ्न करना अन्तराय कर्म की टेव है। इससे उक्त कार्य या प्रकरण प्राप्त किये जाते हैं, अतः यह प्रकृति कही जाती है। उस उस स्वभावसे प्रच्युति नहीं होना स्थिति है, जैसे छिरिया, गाय, भैंस आदि के दूधों की मधुरता स्वभावसे कुछ कालतक च्युत नहीं होती है । कर्मों मे रसविशेष के पडजाने को अनुभव कहते हैं, उदय दशामे उन कर्मों का रस अनुभबा जाता है, अत: पहिले पड गये अनुभाग बंधका अनुमान हो जाता है। कर्मस्वरूप हो गये पुद्गलस्कन्धोंके परमाणुओं को नाप करके इतने परमाणुरूप अवधारण करना प्रदेश है । सूत्रमे पडा हुआ विधि शब्द प्रकार अर्थको कह रहा है, तद्विधयःशब्द मे षष्ठीतत्पुरुष समास कर उस बंधकी विधियां तो “ तद्विधयः " शब्दसे कही जाती है । बंध के प्रकार हो रहे प्रकृति आदिक हैं, यह इस तद्विधयः शब्द का अर्थ है उन्हीं विधियोंको ग्रन्थकार अग्रिम वात्तिकों द्वारा कहते हैं।
तस्य बंधस्य विधयः प्रकृत्याद्याः सुसूत्रिताः । तथाविधत्वसंसिद्धबंद्धव्यानां कथंचन ॥१॥ · स्थित्यादिपर्ययोन्मुक्तैः कर्मयोग्यैर्हि पुद्गलैः ।
प्रकृत्यावस्थितेबंधः प्रथमोत्र विवक्षितः ॥२॥ . प्रतिप्रदेशमेतेर्नु मतो बंधः प्रदेशतः । स्थित्यादिपर्ययाक्रांन्तैः स स्थित्यादिविशेषितः ॥३॥
वात्तिकों मे सूत्रका अर्थ यों समझिये कि तस्य विधयः तद्विधयः' उस बंध के प्रकृति, स्थिती आदिक प्रकार तो उक्त सूत्रद्वारा भले प्रकार सूचित कर दिये गये हैं, कारण कि बंध होने योग्य पदार्थों के कथमपि तिस ढंग से प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश यों चार प्रकारोंकी भलेप्रकार सिद्धि हो रही हो है स्थिति, अनुभाग आदि पर्यायों से रहित हो रहे किन्तु अर्थको नहीं जानना आदि स्वभावों के पडजाने की दशासे अवस्थित हो रहे कर्मयोग्य पुद्गलों करके आत्मा का बंध जाना यहां पहिला प्रकृतिबंध विवक्षाप्राप्त किया गया है । तथा इन कर्मयोग्य पुद्गलों करके आत्माके प्रत्येक प्रदेश मे जो कर्म परमाणओंके प्रदेशोंसे बंध हो रहा है, वह दुसरा या चौथा प्रदेशबंध माना गया है, एवं स्थिति