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दशमोऽध्यायः
ध्यान लगाना चाहिये कि सिद्धक्षेत्रकी अपेक्षा करके सिद्धभगवान् न थोडे हैं और न बहुत हैं । क्योंकि सिद्ध अनन्तानन्त हैं, जो कि दो चार, सौ, हजारसे बहुत बड़ी संख्या है । अतः सिद्ध थोडे नहीं कहे जा सकते हैं। साथही आजतक जितने सिद्ध हों चुके हैं वे एक निगोदिया शरीरमें विद्यमान जीवोंके अनन्तवें एक भाग प्रमाण हैं । " एय णिगोद सरीरे जीवावथमाणदो दिट्ठा, सिद्धेहि अणेतगुणा सव्वे हि वितीद कालेण" एक निगोदियाके शरीरमें काहागण्यनानुसार भूतकालके समयोंसे ओर द्रव्य संख्यानुसार सिद्ध राशिसे अनन्तानन्तगुणे जीव पाये जाते हैं , पुद्गलराशि या अलोंकाकाश प्रदेशराशि अथवा जघन्य ज्ञानके अविभाग प्रतिच्छेदोंसे तो सिद्धराशि अतीव अल्प है । समुद्रमेंसे सूचीके अग्रभागपर आ गये जल कणकी और समुद्रकी उपमा विषम पडेगी, क्योंकि समुद्रके पूरे जलसे सुईके अग्रभागपर आया हुआ पानी संख्यातवें, या असंख्यातवें भाग है । और सिद्धराशि तो पुद्गलराशि या उक्त पदार्थों के अनन्तानन्तवें भाग प्रमाण है । अतः सिध्दोंको थोडा या बहुत कहना उचित नहीं जंचा । एक बात यह भी है कि जो जीव एक समयमें सिध्द हो रहे हैं। उनका थोडा बहुतपन किसकी अपेक्षा लगाया जाय ? प्रत्युत्पन्न नयकी अपेक्षा सिध्द हो रहे जीवोंका कोई अल्प बहुत्व नही है, हां भूत पूर्व अवस्थाको जाननेवाली व्यवहार नयकी अपेक्षा करनेपर उन सिध्दोंका थोडापन और बहुतपन बिचारा जा सकता है । जो कि इस प्रकार है । थोडापन और बहुतपनको जानने के लिये क्षेत्रोंसे हुये सिध्द दो प्रकार प्रतीत करने योग्य हैं। प्रथम तो किसीके द्वारा हर लिये जानेसे जो अन्य क्षेत्रोंमे पडकर सिध्दिको प्राप्त हुये है। वे संहरण सिध्द हैं । और जो अपने जन्म स्थानों के निकट प्रान्तोंमेंही स्वच्छन्द विहार कर उन्हीं क्षेत्रोंसे कर्मों का क्षय कर चुके हैं। वे जन्मसिध्द समझे जाते हैं। उन दोनोंमें संहरण द्वारा क्षेत्रान्तरोंसे सिध्द हुये मुक्त जीव तों जन्मक्षेत्रसे सिध्द हुये मुक्त जीव समुदायसे थोडे हैं । किन्तु फिर उन संहरण क्षेत्रसिध्दोंसे जन्मक्षेत्र सिध्द हो रहे मुक्तजीव संख्यातगुणेपनको धार रहे हैं । इसी प्रकार कर्मभूमि और भोगभूमिकी गणना कर ली जाय, अर्थात् ढाई द्वीपकी जघन्य, मध्यम, उत्तम भोग भूमियोंसे जितने जीव सिध्द हुये हैं । ढाई द्वीपसम्बन्धी कर्मभूमि भूमियोंमेंसे उनसे संख्यात गुणे अधिक जीवोंने सिध्दगति प्राप्त की गई है । तथा समुद्रोंसे सिध्द हुये जीवोंकी अपेक्षा द्वीपोंसे सिध्द हुये जीव संख्यात गुणे हैं । ऊर्ध्वभूमि, अधोभूमि और तिरछी भूमियोंसे हुये सिध्द भी उत्तरोत्तर संख्यात गुणे हैं । ऊर्ध्वदेशमें मनुष्य सुदर्शन मेरुकी चोटीतक ले जाये जा