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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
तो वायुके आवेशसे जलके ऊपर उछल आती है । मुक्त जीवको कोई ऊपर नहीं उठा देता है । अतः दृष्टान्त विषम है । आचार्य कहते हैं कि यह तो नहीं कहना क्योंकि वायुका तिरछा गमन करने का स्वभाव होनेसे तूम्बीके तिरछे गमन होनेका प्रसंग आ जावेगा। वायुसे प्रेरित होकर तूम्बी जाती तो तिरछी जाती, किन्तु तूम्बी जलमें ऊपर जाती है । अतः वह किसीकी प्रेरणासे नहीं किन्तु स्वभावसेही ऊपरको गमन करती है । यों तूम्बी दृष्टान्त सम है।
नन्वेवमूर्ध्वगतिस्वभावस्थात्मनः ऊर्ध्वगत्य मावेऽपि तदभावप्रसंगोग्नेरौष्ण्यवत् तदभावेऽभाववदिति चेन्न, गत्यन्तरनिवृत्त्यर्थत्वात् तदूर्ध्वगतिस्वभावस्य, ऊर्ध्वज्वलनवद्वा तद्भावे नाभावः । वेगवद्रव्याभिघातादनलस्योवज्वलनाभावेऽपि तिर्यग्ज्वलनसद्भावदर्शनात् ।
यहां मुक्त जीवकी सदा ऊर्ध्वगति होती रहना माननेवाले मण्डलीकी ओरसे पूर्वपक्ष उठाया जा रहा है कि जैसे अग्निका स्वभाव उष्णता है। उस उष्णस्वभाववाले अग्निके उष्णपनका अभाव हो जानेपर मूल अग्निका भी जिस प्रकार अभाव हो जाता है। इसी प्रकार ऊर्ध्वगमन स्वभाववाले मुक्त आत्माकी ऊर्ध्वगतिका अभाव हो जानेपर भी उस मुक्त आत्माके अभाव हो जानेका प्रसंग आता है । जैसे कि उष्णताके अभाव हो जानेपर अग्निके अभाव हो जानेका दृष्टान्त दिया जा चुका है। ग्रन्थकार कहते हैं कि यह तो न कहना क्योंकि उस मुक्तात्माके ऊर्ध्वगमन स्वभावका तो अन्य गतियोंकी निवृत्तिके लिये कथन किया गया है। जैसे कि अग्निका स्वभावसे ऊपरकी ओर ज्वाला उठना होता है । उस ऊर्ध्वज्वलनका अभाव हो जानेपर अग्निका अभाव नहीं हो जाता है। देखिये ऊपर वेगवाले द्रव्यका संयोग विशेष हो जानेसे अग्निका ऊर्ध्वज्वलन नहीं भी है। तो भी अग्निके तिरछी ओर जलनेका सद्भाव देखा जाता है । भावार्थ-सुनार या लुहार धातुको गलाते समय तिरछी वायुसे अग्निज्वालाको तिरछा वहां देते हैं, एक फुट ऊंचे चूल्हेपर दो फुट ऊंची अग्निज्वालापर तबा धर देनेसे अग्निशिखायें तिरछी फैल जाती हैं । वेगवान् या बलवान् पदार्थ ज्वालाओंको तिरछा कर देते हैं । वेगवाली वायुसे प्रेरित होकर गैसके हण्डे में प्रदीपज्वाला, या सुनारोंके प्राइमस चूल्हेकी ज्वाला नीचे प्रदेशोंकी ओर जलती है। यों अग्निका अभाव नहीं 'हुआ है । और तिरछा चलना, नीचर्बलन अग्निका स्वभाव भी नहीं माना जाता है।