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दशमोऽध्यायः
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उत्कृष्ट अभाव हो जाना तो संवर समझ लिया जाय अर्थात् बन्धहेत्वभावका अर्थ संवर तत्त्व है ॥ १ ॥ पुनः वही जिज्ञासु पूंछ रहा है कि महाराज वह निर्जरा भला क्या पदार्थ है ? बताओ । ऐसी सविनय जिज्ञासा प्रवर्तनेपर आचार्य महाराज अग्रिम वार्तिकोंको स्पष्टरूपेण कह रहे हैं कि चौदहवें गुणस्थानवर्त्ती अयोग केवली भगवान्के अन्तिम क्षणमें उपजी उत्कृष्ट निर्जराही यहां निर्जरा ली गई है । समर्थ कारणों करके अव्यवहित उत्तर क्षणमेंही कार्य बना दिया जाता है । अतः उन उत्कृष्ट संवर और उत्कृष्ट निर्जरा तत्त्वों करके अनन्तर क्षणमें मोक्ष तत्त्व उत्पन्न हो जाता है । उन संवर और निर्जरा दोनोंमेंसे किसी भी एकका अपाय यानी विकलता हो जानेपर इस मोक्ष कार्यकी उत्पत्ति नहीं हो पायेगी ॥ २ ॥ क्योंकि पहिले कहे गये संवरका विश्लेष हो जानेपर तो किसी भी आत्मामें सम्पूर्ण कर्मोंका क्षय नहीं हो पाता है । जब कि अपने निमित्तकारणों द्वारा उत्तरोत्तर कर्मोंका आना बढता रहेगा तो सम्पूर्ण कर्मों का क्षय नहीं हो पायेगा । भावार्थ -- नावमेंसे शनैः शनैः पानी निकालते हुये भी यदि नावका छेद नहीं बन्द किया है । तो नावका पानी कभी नहीं निश्शेष हो सकेगा । इसी प्रकार यदि गुप्ति आदि द्वारा संवर नहीं किया जायगा तो अविरति प्रमाद आदि भावों करके कर्मोंका आस्रव हो जाता ही रहेगा मोक्ष नहीं हो पायेगा ॥ ३ ॥ तथा दूसरे कारण निर्जराका अपाय मान लेनेपर भी किसी भी आत्मामें सर्व कर्मोंका. विनाश नहीं हो सकेगा । जब कि संचित हो रहे पूर्व कर्मोंकी आत्मामें दृढरूपेण अब स्थिति हो रही है । अर्थात् छेद बन्द कर देनेपर भी नावमेंसे यदि पूर्वसंचित जलको नहीं निकाला जायगा तो नाव आधी पौन तो अब डूब ही रही है । फल कालमें संस्कारवश वायुके झकोरो द्वारा पूरी डूब जायगी यों नावमेंसे जल निश्शेष नहीं हो पायेगा, अतः अनुपक्रमसे साध्य हो रही निर्जराके होते सन्तेही मोक्ष हो पाता है । यह कार्यकारणभाव कोई विरोध दोषको देनेवाला नहीं है ॥ ४ ॥ सम्यग्दर्शन और सम्यज्ञानसे युक्त हो रहे जीवके चमत्कारक तपसे भावसंवर उपज जाता है । इससे अन्य कोई मोक्षका मार्ग नहीं है । तप तो चारित्र है, अतः सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र इन तीनों रत्नत्रय स्वरूपही मोक्षमार्ग है । जो कि आध सूत्रमें कहा गया था ॥ ५ ॥ इसी प्रकार एक देश मोक्ष हो जाना स्वरूप जो निर्जरा है। वह भी उस श्रेष्ठमार्ग रत्नत्रयका फलस्वरूपही है। संचित कर्मोकी रत्नत्रयसे निर्जरा हो जाती है । यों