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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
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॥ श्री ॥
अथ दशमोऽध्यायः ॥
नवम अध्यायके अनन्तर अब तत्त्वार्थाधिगमशास्त्रके दशवें अध्यायका प्रारम्भ
किया जाता है
असंख्यवन्दारुसुरेन्द्र वृन्दनिमेषशन्याक्षिसहसलोक्यं निकृष्टकर्माष्टकौलवत्रं,
नमामि वीरं त्रिजगच्छरण्यम् ॥१॥ इदानीं मोक्षस्य स्वरूपाभिधानं प्राप्तकालं तत्प्राप्ति: केवलज्ञानपूविकेति केवलज्ञानोत्पत्तिकारणमुच्यते । “ अथेदानी मोक्षस्वरूपमप्रतिपादयितुंकामो भगवान् पर्यालोचयति मोक्षस्तावत्केवलज्ञानप्राप्तिपूर्वको भवति, तस्य केवलस्योत्पत्तिकारणं किमिदमेवेति निर्धार्य सूत्रमिदमाहुः,।
___ अब इस समय दशमें अध्यायके प्रारम्भमें सातवे मोक्ष तत्त्वके प्रतिपादनके लिये शुभकामना रख रहे भगवान उमास्वामी महाराज मनमें पर्यालोचना करते हैं कि मोक्ष तो पहले केवलज्ञानकी प्राप्ति हो जानेपर होती है। यों मोक्षके स्वरूप कथनका अवसर प्राप्त हो जानेपर मोक्षके पूर्व में हुये केवलज्ञानका निरूपण करना आवश्यक हुआ । उस केवलज्ञानकी उत्पत्तिका कारण क्या यह ही वक्ष्यमाण सूत्रोक्त हो सकता है ? इस प्रकार सदागम--सत्तर्क अनुसार निर्धारण कर केवलज्ञानके उत्पादक कारणकी प्रतिपत्ति करानेवाले इस अग्रिम सूत्रको महामना उमास्वामी महाराज स्पष्टरूपेण कह रहे हैं।