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अष्टमोऽध्यायः
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कषायों के उपजते ही भावबध अनुसार भटिति पौद्गलिक व मका ग्रहण हो जाता है । आबाधा कालके पीछे अन्य भी द्रव्य, क्षेत्र काल भावों का निमित्त मिल जानेपर उन कर्मों के अनुसार जीव के कषाय उपजेंगी । यह जिनागममे कर्मसिद्धान्त की व्यवस्था युक्तिपूर्ण कही गयी है ।
पुद्गलवचनं कर्मरस्तादात्म्यख्यापनार्थ पुद्गलात्मकं द्रव्यकर्म न पुनरन्यस्वभावं तर्दासद्धमिति चेन्न, अमूर्तेरनुग्रहोपघाताभावात् । न ह्यमूर्तिरात्मगुणो जीवस्या मूर्तेरनुग्रहो घातौ वर्तुमलं कालवदाकाशादीना । मूर्तिमतरतु पौद्गलिकस्य कर्मणोनुग्रहोप घातक रणममूर्तेप्यात्मनि कथंचिन्न विरुध्यते तदनादिबंधं प्रतीतस्य मूर्तिमत्वप्रसिद्ध रन्यथा बंधायोगात् ।
सूत्रमे पुद्गल शब्द का कथन करना तो कर्मका पुद्गल के साथ तदात्मकपने की ख्याती कराने के लिये है, द्रव्यकर्म पुद्गल स्वरूप है, अन्य आत्मगुण या अविद्यास्वरूप नहीं हैं । वैशेषिकने अदृष्ट को आत्माका गुण स्वीकार किया है, किन्तु जो आत्मा का गुण है वह आत्माको मोक्षसे हटाकर संसार बंधन का हेतु नहीं हो सकता है। योग, बौद्ध, कापिलों ने भी कर्मको अनेक प्रकारों से परिभाषित किया है । सूक्ष्म पर्यवेक्षण करनेपर कर्म पोद्गलिक ही सिद्ध होते हैं। यहां कोई वैशेषिक आक्षेप करता है कि कर्मका वह पौद्गलिकपना असिद्ध है | व्यापक, नित्य, अमूर्तिक आत्मा के साथ मूर्त, सावयव, पुद्गल नहीं बंध सकते हैं, अतः पुण्यपाप कर्मस्वरूप अदृष्ट तो आत्माका ही गुण हैं । ग्रन्थकार कहते हैं कि यह तो नहीं कहना कारण कि अमूर्त आत्माके ऊपर अमूर्त अदृष्ट करके सुख प्राप्ति कराना रूप अनुग्रह करना और दुःखाना रूप उपघात करना नहीं हो सकते हैं । जैन तो संसारी आत्माको पौद्गलिक कर्मों के साथ बंध हो जाने के कारण मूर्त स्वीकार करते हैं, अतः मूर्त आत्माके ऊपर मूर्तकर्म अपनेद्वारा अनुग्रह और उपघात कर सकते हैं, किन्तु वैशेषिकों के यहां आत्मा और आत्म गुणों को नियमसे अमूर्त माना गया है, ऐसी दशामे रहा आत्मगुण अदृष्ट बिचारा अमूर्तिक जीवके अनुग्रह और उपघातों के समर्थ नहीं है, जैसे कि मूर्ति काल अमूर्त हो रहे आकाश दिशा आदिके उपघातोंको नहीं कर पाता है। हाँ जैन सिद्धान्त अनुसार मूर्तिमान पौद्गलिक कर्म के द्वारा अनुग्रह और उपघात करना कथंचित् अमूर्त हो रहे भी आत्मा मे कथमपि विरुद्ध नहीं पडता है । क्योंकि उन पौद्गलिक कर्मों के साथ अनादि काल से बंधे रहने की इत्थंभूत प्रतिपत्ति अनुसार उस आत्मा
मूर्तिरहित हो करने के लिये उपर अनुग्रह