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नवमोध्यायः
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सिद्ध भगवान भी निश्चय तपको तपतें रहते हैं । जैसे कि कमलपत्र सर्वदाही कोशिश से अपने लोटे २ रोंगटोंको सतर किये रखता है, जो कि रोम पानीके कणोंसे भी बहुत बारीक और सघन हैं । तभी पत्तेको पानी नहीं छू पाता है । हां, उस रोमावलीक मुरझा जानेपर पत्ते से पानी मिड जाता है । क्योंकि पत्तेको बेलसे तोड देनेपर या सुखा देनेपर कुछ काल पश्चात् वह यत्न ढीला पड जाता है । प्रत्येक वृक्ष स्वशक्तिसे अपने तना, शाखाओं, पत्तों, फूलों, फलोंको ताजा ( सजाता हुआ ) बनाये रखता है | अतः रोमावलीको सदा सतर बनाए रखना पडता है तभी कमलपत्र अपने शरीरसे पानीको नहीं लगने देता है | संसारी जीवों या पुद्गलोंके गुणों समान सिद्ध भगवान के गुणों को भी अर्थक्रियायें करनी पडती हैं । तभी वे अपने कैवल्य या सिद्धत्वकी रक्षा कर पाते हैं। यों शुद्ध आत्माओंका स्वरूप हो रहा तपोधर्म है ।
परिग्रहनिवृत्ति स्वरूप त्याग तो पूर्णरीत्या सिद्धों में ही है । अर्हन्तोंके भी शरीर और चार अघातिया कर्म लग रहे हैं । दानान्तराय कर्मके क्षयसे उपजा क्षायिक दान सिद्धों में भी पाया जाता है । उदासीनतया वे जीवोंके लिये ज्ञानदान, अभयदान मोक्षमार्ग प्रदान करते रहते है । अष्टशतीकी ' यावन्ति कार्याणि तावन्तः स्वभावभेदा: ' इस पंक्ति तथा श्री गोम्मटसार अनुसार नो आगम द्रव्यको जब सिद्धमें लगाया जायगा तो विशुद्ध बुद्धिवाले जिज्ञासुओंके हृदय में उक्त सिद्धान्त भले प्रकार बैठ जावेगा । यों निश्चय उत्तमत्यागधर्मस्वरूप तो सिद्धचक्र ही है अन्य कोई नहीं ।
जैन न्यायशास्त्रका अखण्ड सिद्धान्त है कि भावाभावात्मकं वस्तु ' प्रत्येक पदार्थ भावों और अभावोंका तदात्मक पिण्ड हो रहा है । एक द्रव्यका दूसरे द्रव्य या उसकी पर्यायोंके साथ अत्यन्ताभाव हो रहा है । द्रव्यकी सजातीय पर्यायोंमें अन्योन्याभाव प्रविष्ट हो रहा है । ये अभाव सभी द्रव्यों और स्वभावोंमें, अविभाग प्रतिच्छेदोंमें यहांतक कि स्वयं अभावोंमें भी पाये जाते हैं । इसका दृष्टान्त द्वारा स्वल्प स्पष्टीकरण यों है । वर्तमानमें जितने मनुष्य विद्यमान हैं उन सबके भाग्य, आदतें, वचन--प्रणाली, विचारणायें, हस्ताक्षर आदि न्यारे २ है । यही नहीं सबकी सूरतें मूरतें भी न्यारी २ है । तभी तो लोग अपने २ लडके, मां, बाप, पत्नी, स्वामी, 1 सेवकको झट पहचान लेते हैं । इस आकृति भेदसेही ब्रम्हचर्य और अचौर्याणुव्रतकी खासी रक्षा हो पाती है । यदि सूरतें या आकृतियां भिन्न २ न होती तो सुन्दरी ताराके लिये
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