________________
नवमोध्यायः
३६७)
इसका अभिप्राय यही है कि द्रव्य-पुरुषही मोक्षको प्राप्त करता है। स्त्री या नपुंसक तद्भवसे मोक्ष नहीं जाते हैं । इनको वस्त्र रखना अनिवार्य है। निर्ग्रन्थलिंगसे ही साक्षान्मोक्ष प्राप्त होगा. सग्रन्थलिंग करके अव्यवहित रूपसे मोक्ष नहीं हो सकती है। यों संयमीका उत्सर्ग मार्ग आचेलक्यही समझा जाय। वस्त्रसहित हो जानेपर जीवकी देशसंयम या असंयम अवस्था समझी जायगी। मुझ देशभाषाकारको यह विश्वास नहीं हुआ कि श्लोकवात्तिक महान् ग्रन्थमें शीतकाल, लज्जा आदिके अवसरपर उपकरण वकुश मुनि कम्बल, कौशेय वस्त्रको रख सकते हैं। अनगारधर्मामृतको रचनेवाले उद्भट पण्डित आशाधरजीने अपराजित सूरिकी टीकाका आश्रय लेकर मूलाराधना टीकामें अचेलत्वको पोषा है। इससे श्री अपराजित सूरिका दिगम्बरत्व और प्रकांड विद्वत्त्व प्रकट हो जाता है। तभी तो आशाधरजी विजयोदया टीकाका सहारा ले रहे हैं। कोई भी दिगम्बर आम्नायका विद्वान् मुनिको वस्त्र रखना पुष्ट नहीं कर सकता है। भगवती आराधना और उसकी टीकामें भी वस्त्रका समर्थन नहीं है। प्रत्युत प्रबल युक्तियोंसे वस्त्र, पात्र रखनेका खण्डन किया है। ऐसी आचेलक्यकी पुष्टि अन्य ग्रन्थोंमें दुर्लभ है। __ पीतपद्मशुक्लास्तिस्त्रो लेश्याः पुलाकस्य भवन्ति ।
पुलाक आदि पांचों निर्ग्रन्योंके संयम, श्रुत, प्रतिसेवना, तीर्थ, लिंग, इन पांचों अनुयोगोंका व्याख्यान कर दिया गया है । अब पांचों मुनिवरोंमें छठे लेश्या अनुयोगको घटित करते हैं। प्रथमोक्त पुलाक मुनिके पीत, पद्म और शुक्ल ये तीन शुम लेश्यायें पाई जाती है।
कृष्णो नीलश्च कापोतः पीताः पद्मश्च शुक्लगः, लक्षणाः षडपि लेश्या वकुशप्रतिसेवना ॥ कुशीलयोर्भवन्त्येव कथितेयं महर्षिभिः ॥ १४ ॥
तथा बकुश और प्रतिसेवना कुशील नामक मुनियोंके कृष्ण, नील और कापोत ये तीनों अशुभ लेश्यायें तथा पीत, पद्म लेश्या और शुक्लवर्णोचित कर्तव्यको प्राप्त हो रही शुक्ल लेश्या यों स्वकीय वर्णोचित आचरणों स्वरूप हो रही छओं भी लेश्यायें पाई जाती ही हैं । इस प्रकार महान् ऋषिवरोंने इस लेश्याको कहा हैं।