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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
प्रकार संयमका पालन कर सकेगा ? । वस्त्ररहितपनमें सातवां गुण चित्तकी विशुद्धिका प्रकट करना भी है । जो कौपीन धोती, दुकूल आदि वस्त्रोंसे अंगोंको ढक रहा है। उसके भावशुद्धि नहीं जानी जाती है । " कूपे पातितुं योग्यं कौपीनं = पापं " तद्विशेषकारणत्वात् लिंगमपि कौपीनं तदाच्छादनवस्त्रत्वाद्वस्त्रमपि -कौपीनं " कौपीन शब्दकी निरुक्ति यों की गई है कि कृप+ खञ् कुमें गिरा देने योग्य जो पदार्थ है । वह कौपीन है, जो कि पाप है । पापका विशेष कारण होनेसे लिंगको भी कौपीन कहा गया है । और लिंगके आच्छादनका वस्त्र होनेसे लंगोटीको भी उपचरितोपचार या लक्षितलक्षणासे कौपीन कह दिया गया है। यों कौपीनधारीका अन्तरंग विशुद्ध नहीं है । किन्तु निष्परिग्रही साधुके शरीर या शरीरके गुह्य अंगोंमें कोई विकार नहीं होनेके कारण वैराग्यभाव स्पष्ट है । इस अचेलतासे आठवां निर्भयता गुण भी मुनिके हो जाता है । मुनि विचारता है कि ये चोर, डाकू उठाईगीरे मेरा यह क्या अपहरण कर सकते हैं, परिग्रह होता तो मुझे ताडते, बांधते, किन्तु मुझ परिग्रहत्यागीको ये क्या नाडेंगे ? अथवा क्या बांधेगे ? यों निर्भयपनको प्राप्त हो रहा है । किन्तु वस्त्रसहित पुरुष तो भयातुर हो जाता है । और परिग्रहकी रक्षाके लिये क्या क्या पाखंड नहीं करता है ! अचेलतासे सब जीवोंमें विश्वास बना रहना गुण भी नौमा प्रकट हो जाता हैं। परिग्रहरहित हो रहा मुनि किसीकी भी शंका नहीं करता है। सबके साथ विश्वास रखता हुआ बेखटके प्रवर्तता हैं। हां, वस्त्रधारी तो प्रत्येक अपने साथ मार्गमें चलनेवाले सहचरको अथवा अन्य किसी भी तटस्थ मार्गगामीको देखकर उनमें विश्वास नहीं करता है। यह कौन है, चौर है, उठाईगीरा है, क्या करेगा ऐसा अविश्वास उसके मनमें शल्यके समान चुभता रहेगा। निर्वस्त्र मुनिका एक अप्रतिलेखना · दशवां गुण भी पाया जाता है । अर्थात् निकटमें किञ्चित् भी परिग्रह नहीं होनेसे पिच्छिका द्वारा अधिक शोधना नहीं करनी पडती है । कम्बल, दण्ड, पात्र आदि चौदह प्रकार उपाधियोंको ग्रहण कर रहे श्वेताम्बर साधुको उनके धरने, उठने आदिमें बहुत प्रतिलेखना करनी पडती है । तिस प्रकार निष्परिग्रह नग्न मुनिको इतना झंझट नहीं करना पडता है । परिकर्मवर्जन भी अपरिग्रही साधुका ग्यारहवां गुण पाया जाता है । वस्त्रधारीको खोलना, लपेटना, छोडना, सीवना, बांधना, रंगना, झाडना आदिक अनेक परिकर्म करने पडते हैं । अपने वस्त्र, दोहर, डुपट्टा आदिको स्वयं परवारना अथवा धोना, सुखाना, ये खोटे कर्म और