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तत्त्वार्थश्लोक वार्तिकालंकारे
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अथवा वस्त्ररहितपन या पात्र आदि रहितपनकी प्रशंसाका दूसरे प्रकारोंसे भी प्रक्रम उठाते हैं । बात यह है कि साधुका एक प्रधानगुण संयमकी शुद्धि रखना है । अचेलतासे ही संयमशुद्धि हो पाती है । स्वेद ( पसीना ) और धूलके मलसे चारों और लिप्त हो रहे वस्त्रमें उस पसीना मैलको योनिस्थान पाकर उपजे त्रस जीव और स्थूल, सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव उस वस्त्रका आश्रय पाकर उपजते रहते हैं । वस्त्रको ग्रहण करने - वाले पुरुष करके वे बाधाको प्राप्त होते हैं । जीवोंसे संसक्त हो रहे वस्त्रको तबतक स्थापन कर दिया जायगा तो भी हिंसा अवश्य होगी क्योंकि वायु, घाम शरीरकी उष्णतासे वे जीव मर ही जायेंगे । यदि जीवोंको पृथक किया जाता है ! तो वस्त्रसे दृढ चिपक रहे जीव मर जाते हैं । चेलधारी पुरुषको महान् असंयम होता है। क्योंकि उसके स्थित होने, सोने, बैठने, फाडने, छेदने, बांधने लपटने, परवारने, मलने निचोडने, धूपमें डालने आदिमें जीवोंको महती बाधा उपजती है । यों सवस्त्र मुनिके प्राण संयम नहीं पला । हां, वस्त्ररहित दिगंबर मुनिके इस प्रकार असंयम हो जानेका अभाव है | अतः संयमकी विशुद्धि हो रही हैं । साधुका दूसरा गुण या दूसरा संयम इन्द्रियोंपर विजय प्राप्त करना है । सर्पोंसे आकुलित हो रहे बनमें जिस प्रकार सर्पविद्या, नागमंत्र, नागदमनी औषधि, गरुड आदिसे रहित हो रहा पुरुष अतीव दृढ प्रयत्नशाली होता है, सदा चौकन्ना रहता है, इसी प्रकार इन्द्रियोंके नियंत्रण करने में वस्त्ररहित मुनि भी सचेष्ट होकर प्रयत्न करता है । अन्यथा यानी सवस्त्र होकर इन्द्रियविजय में असावधानी की जायगी तो शरीर में विकार उपजेगा और लोकमें लज्जास्पद होना पडेगा । यों वस्त्ररहित मुनिही इन्द्रिय संयमको पाल सकता है । अचेलतासे तीसरा गुण कषायोंका अभाव हो जाना भी प्राप्त होता है । कारण कि वस्त्रधारी पुरुष वस्त्रका चोरोंके भय से गोबर, मट्टी आदिके रससे लेप करता हुआ वस्त्रको छिपाकर किसी भी प्रकार मायाचार करता है अथवा अनुचित मार्ग करके चोरको ठगने या धोका देनेके लिये प्रवृत्ति करेगा और स्वयं झाडी, वेल, वृक्षकोटर आदिमें छिप जायगा यह तीव्र मायाचार हैं । मेरे पास वस्त्र, कम्बल आदि हैं । यों विचार कर मानकषायको भी धारण करता है । बलात्कारसे डाकू लोग छीनते हैं । तो अवश्य उनके साथ कलह करेगा । वस्त्रका लाभ हो जानेसे लोभकषायकी प्रवृत्ति होती है यों वस्त्रको ग्रहण करनेवाले जनोंके वे दोष पाये जाते हैं । किन्तु फिर वस्त्ररहित अवस्था में मुनिके इस प्रकार माया, मान