________________
तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
३४४)
पंच समितियोंका और तीन गुप्तियोंका प्रतिपादक है। गौणरूपसे अन्य आचार या द्रव्यानुयोग आदिकी भी प्रतिपत्ति कराता होगा। जैसे कि चारों गतियोंके स्वरूपका निरूपण करनेवाला प्रतिपत्ति नामका श्रुतज्ञान है।
समितिगुप्तिप्रतिपादकमागमं जानातीत्यर्थः । स्नातकानां केवलज्ञानमेव । तेन तेषां श्रुतं नास्ति । उक्तं च-पुलाकः सर्वशास्त्रज्ञो वकुशो भव्यबोधक', कुशीलस्तोकचारित्रो निग्रंन्थो ग्रन्थहारकः । स्नातकः केवलज्ञानी शेषाः सर्वे तपोधनाः । पंचमहाव्रतलक्षणमूलगुणाष्टाविंशति रात्रिभुक्तिविरहितेषु चान्यतमं बलात्परोपरोधात्प्रतिसेवमानः पुलाको विराधको भवति । रात्रिभोजनविराधकः कथमिति चेदुच्यते । श्रावकादीनामुपकारोऽनेनभविष्यतीति वा अन्नादिकं रात्रौ भोजयतीति विराधकः स्यात् ।
... अष्ट प्रवचन माताका अर्थ यह है कि पांच समिति और तीन गुप्तियोंके प्रतिपादक आगमको वकुश आदिक जानते हैं । हां, स्नातक मुनिवरोंका ज्ञान तो केवलज्ञानही है । तिस कारण उन स्नातकोंके श्रुतज्ञानकी प्ररूपणा नहीं है। अन्य ग्रन्थमें भी ऐसा कहा गया है कि पुलाक मुनि प्रायः संपूर्ण शास्त्रोंको जानता है। वकुश मुनि तो भव्योंको प्रबोध करानेवाले शास्त्रोंका ज्ञाता है । कुशील यति स्वल्प चारित्रको धार रहा भव्योंको तत्त्वज्ञान कराता है। और निर्ग्रन्थ मुनि महाराज तो समाधिस्थ हो रहे सन्ते नयात्मक ज्ञानोद्वारा अन्तरंग परिग्रहोंका नाश कर रहे हैं। स्नातक केवलज्ञानके धारी हैं। शेष संपूर्ण मुनि महाराज तपश्चरणको परमधन मानकर योग्य शास्त्राभ्यासी हैं । अब प्रतिसेवनाको यों समझिये कि पंच महाव्रत स्वरूप मूलको धार रहे ऐसे अट्ठाईस मूलगुण और रात्रिभोजन त्याग यों पंच महाव्रत, अट्ठाईस मूलगुण और रात्रिभोजन त्याग इन तीन व्रतोंमेंसे किसी एकको दूसरोंके उपरोधवश बलात्कारसे प्रतिसेवन कर रहा पुलाक मुनि विरोधक हो जाता है। अर्थात् उक्त तीन व्रतोंमेंसे क्वचित्, कदाचित, एक व्रतका विनाश कर बैठता है। यदि यहां कोई यों शंका करे कि रात्रिभोजन त्यागवतकी विराधना किस प्रकार कर देगा ? क्या पुलाक रातको कुछ खा लेगा ? इसपर यही समाधान कहा जाता है कि श्रावक, पशु, पक्षी, बालक, आदि जीवोंका इस रात्रिभक्षणसे उपकार हो जावेगा। यों विचार कर रात्रिमें अन्न, दुग्ध, जल, औषधि आदिका भोजन करा देता है। यों किसी श्रावक आदिके जीवन, मरणकी कठिन समस्या उपस्थित हो जानेपर