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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकालंकारे
संबंधविषया ” विशेष्य और विशेषण दोनोंके विवक्षित संबंधद्वारा घटित हो जानेपर ही विशिष्ट बुद्धि हुयी कही जायगी ।
चारित्रपरिणामोत्कर्षापकर्षभेदेपि सतिनैगम संग्रहव्यवहारनयाधीनतया पंचापि निर्ग्रन्थाः कथ्यन्ते जात्याचाराध्ययनादिभेदेपि द्विजन्मवत् |--
उक्त प्रकार पुलाक आदि संयमियोंमे उत्तरोत्तर विशुद्ध चारित्र परिणतियोंका बढते जाना और पूर्व पूर्व के चारित्र परिणामका -हास होते जाना यों परस्परमें भेद होते सन्ते भी नैगम, संग्रह और व्यवहारनयकी अधीनता करके पांचों भी पुलाक आदिक मुनि निग्रन्थ कहे जाते हैं । जैसे कि जाति, आचार, अध्ययन तिलकपद्धति आदि भिन्न भिन्न होते हुये भी जन्म और संस्कार दो से उत्पन्न हुये द्विजन्मा सभी ब्राम्हणों को ब्राम्हण कह दिया जाता । यों परार्थानुमान बनाकर सूत्रोक्त सिद्धांतको पुष्ट कर दिया गया है ।
तेषां पुलाकादीनां भूयोपि विशेषप्रतिपत्त्यर्थमाह ;
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उन पुलाक, वकुश आदि तपस्वियोंकी पुनरपि शिष्योंको विशेषप्रतिपत्ति कराके लिये सूत्रकार महाराज इस अगले सूत्रको कह रहे हैं । लिखित पुस्तक में इस सूत्र के अवतरणमें ऐसा पाठ है । " अथ पुलाकादीनां पंचानां विशेषतयावबोधार्थं कथयति " अब श्री उमास्वामी महाराज पुलाक, वकुश आदि पांचों मुनिवरोंका विशेषरूपेण परिज्ञान करानेके लिये अग्रिम सूत्रको कह रहे हैं ।
संयमश्रुतप्रतिसेवनातीर्थलिंगलेश्योपपादस्थानविकल्पतः
साध्याः ॥ ४७ ॥
इन पुलाक आदि पांच तपस्वियोंको संयम, श्रुत, प्रतिसेवना तीर्थ, लिंग लेश्या, उपपाद और स्थान, इन आठ अनुयोगोंके भेदोंसे साध लेना यानी बखान लेना चाहिये । जैसे कि पुलाक, मुनि सामायिक संयम, और छेदोपस्थापना संयममें वर्तते हैं । इसी प्रकार इनका शास्त्रज्ञान कितना है ? यह भी विचारणीय है । क्यों कि मोक्ष पुरुषार्थके लिय ध्यानकी आवश्यकता है । और ध्यान तो नयज्ञान और श्रुतज्ञानके विशेष अनुभवी विद्वान्को हुये पाये जाते हैं । एवं संयम आदि से मुनिवरोंका विशेष परिचय स्वयं ग्रंथकार कंठोक्त कर दिखावेंगे ही ।