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नवमोध्यायः
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कर रहे हैं । उस आक्षेपके प्रवर्तनेपर ग्रन्थकारसे यह उत्तर कहा जा रहा है कि ध्यानकी एकाग्रता अन्तर्मुहूर्त कालतक मानी गयी है। अनेक वर्षांतक ध्यानकी एकाग्रता बने रहना प्रसिद्ध नहीं है । तत्वोंका उपदेश कर रहे केवलज्ञानियोंका ध्यान भी अनेक वर्षोंतक ठहर रहा नही माना गया है । तेरहमें गुणस्थानके अन्तमें केवलज्ञानीको तीसरा शुक्लध्यान इष्ट किया गया है । अतः उपदेश देते समय लाखो, करोडों, वर्षोंतक वे मात्र केवलज्ञानी है । ध्यानी नहीं हैं जैसे कि सिद्धभगवान् केवलज्ञानी होकर भी ध्यानी नहीं हैं । तिसही कारणसे बुद्धिरूप धनको धारनेवाले विद्वानों करके वे सिद्धस्वरूप हो रहे स्तुति (त) किये जाते हैं। देहसहित होते सन्तें भी सिद्धोंके समान धर्मोके धारनेकी अपेक्षासे तेरहवें गुणस्थानवाले केवलज्ञानियोंको सिद्ध कहा जाता है । सिद्ध भी करने योग्य संपूर्ण कार्योंको साध चुके हैं अतः कृतकृत्य है तथैव कर्मोको जीतनेवालोंके अधिपति हो रहे सयोगकेवली भी कृयकृत्य हैं। स्तोत्रोंमे ऐसा वर्णन है । हाँ, चौदहवें गुणस्थानमें आयोगीपन अवस्थाके उत्पन्न होनेके पहिले अन्तर्मुहूर्त कालतक तेरहवें गुणस्थानमें तीसरा शुक्लध्यान केवल ज्ञानीको हो रहा बखाना गया है जो कि धर्मोपदेश देने या कोई भी वचनकी प्रवृत्तिसे विशेषरूपेण वर्जित है। योगोंका निरोध करते हये तेरहवेंके अन्तमें ध्यानी केवलज्ञानीका धर्मोपदेश नहीं प्रवर्तता है । वचन या कायकी यहां वहाँ अंटसंट प्रवृत्तिका सद्भाव होनेपर जिस प्रकार हमसरीखे अल्पज्ञानी पुरुष ध्यानी नहीं हैं। उसी प्रकार तेरहवें गुणस्थानमें वर्षोंतक वचन या शरीरकी प्रवृत्ति होनेपर अर्हन्त भगवान् भी ध्यानी नहीं हैं। ऐसे उन अर्हन्त भगवान्के भलेही उपचारसे ध्यानका निरूपण कर दिया जाय किन्तु तेरहमें, चौदहवें गुणस्थानोंके अन्तिम अन्तमुहूर्तों में केवलज्ञानियोंके पाये जा रहे दो शुक्लध्यान मुख्यही मान लेने चाहिये ।
तदेतद्व्यवहारनिश्चयनयनिरूपणनिपुणैः प्रमाणांतःकरणप्रवणैः सर्वमालोच्यं परमगहनत्वाच्छद्मस्थास्मादृशजनानामिति निवेदयन्नुपसंहरति,
___ तिसकारण व्यवहारनय और निश्चयनयसे प्रतिपादन करने में निपुण हो रहे और प्रमाणज्ञानोंमें अन्तःकरण (मन) की वृत्तिको लगानेमें प्रवीण हो रहे विद्वानों करके यह सभी ध्यानका प्रकरण विचार कर लेने योग्य है । क्योंकि अल्पज्ञानी हमसरीखे अल्पज्ञ मनुष्योंके विचारानुसार ध्यानतत्व परमगहन है । इस रहस्यका निवेदन करते हुये ग्रन्थकार प्रकरणका उपसंहार ( संकोच ) करते हैं, उसकी शिखरिणी छन्दद्वारा प्रतिपत्ति कीजिये।