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तत्त्वार्थलोकवातिकालंकारे
जाय तो भी हिंसाके दोषोंकी कथमपि निवृत्ती नहीं हो सकेगी। जिस प्रकार मन्त्रोंद्वारा शत्रुको या सांप को मार रहा प्राणी हिंसक ही है, उसी प्रकार मन्त्रोंसे भी अश्व, बकरा आदि को मारनेवालेके खोटे पाप कर्मोंका बंध अवश्य ही होवेगा, हिंसा, परस्त्रीसेवन, पूजन, दान आदि क्रियाओं अनुसार नियत हो रहे अशुभ शुभ परिणामोंको कारण मानकर पापकर्म और पुण्य कर्मोंका बंध नियत हो रहा है , स्वार्थवश किये गये हिंसा आदि कर्मोद्वारा उसका अन्य प्रकारोंसे विधि या निषेध करना असंभव है । तीसरी बात यह है कि कर्ताका असंभव है अर्थात् अग्निहोत्र आदि क्रियाओंका कर्ता न तो शरीर हो सकता है तथा सर्वथा नित्य या सर्वथा क्षणिक आत्मा भी कर्ता नहीं हो सकता है। देखिये भौतिक शरीर कर्ता माना जायेगा तब तो वह अचेतन होनेसे पुयपाप क्रियाओंकी संचेतना नही कर सकता है, सर्वथा नित्य आत्मा पूर्वापर कालोमे एकसा है। अतः विकार नही होनेसे कर्तृता हट जाती है, क्षणिकआत्माके मन्त्राधौंका स्मरण रखना उनका प्रयोग चिंतन आदि बन नही सकते है। अतः कर्ता का अभाव हो जानेसे क्रियाफल का सम्बन्ध नहीं हो सकता है, वात्तिक वाक्योंका तत्वार्थ राजवार्तिकमे श्री अकलंक देव महाराजने प्रथमसे ही श्रेष्ठ भाष्य रच दिया है विशेषज्ञ पुरुष वहांसे व्युत्पत्तिलाभ करे।
पंचविधं वा मिथ्यादर्शनम् ।
मिथ्यादर्शनके नैसर्गिक और परोपदेश जन्य दो भेद किये, परोपदेश जन्य के तीन सौ त्रेसठ भेद कहे गये है। अब दुसरे प्रकारोंसे मिथ्यादर्शनके भेद को कहते है कि अथवा एकांत मिथ्यादर्शन, विपरीत मिथ्यादर्शन, संशय मिथ्यादर्शन, वैनयिक मिथ्यादर्शन और आज्ञानिक मिथ्यादर्शन यों पांच प्रकारका मिथ्यादर्शन है। यह इस प्रकार ही है यों धर्मों और धर्ममे एकान्त आग्रहपूर्वक अभिप्राय रखना प्रकान्त मिथ्यादर्शन है जैसे कि ब्रह्माद्वैतवादि सभी पदार्थोंको ब्रह्ममय मानते है कोई पण्डित पदार्थोंको अनित्य मानते हैं, अन्य नित्यपनका आग्रह कर बैठे है, ये सब एकान्त मिथ्यात्व है। वस्तुस्थितीके विपरीत ही श्रद्धान कर बैठना विपर्यय मिथ्यादर्शन है। जैसे कि परिग्रहसहित भी पुरुष अथवा स्त्री भी मोक्षलाभ कर लेती है साधारण मनुष्योंके समान केवली भी कौर खाकर आहार करते हैं यों श्वेतांबरों,बौद्ध वैष्णव, आदि पण्डितोने अभिनिवेश कर रक्खा। प्रमाणोंद्वारा निर्णीत हो रहे विषयोमे संशय रखना संशय मिथ्यादर्शन है। तदनुसार सम्पूर्ण विष्ण,महादेव, भैरव, जिनेंद्र, बुद्ध, अल्लामियां, ईसा काली आदि देवों और सम्पूर्ण कुराण, पुराण, बाइबिल, आल्हरखंड, कामसूत्र, गोम्मटसार ग्रन्थसाहब, आदि ग्रन्थोंको समान दृष्टिसे पूजना, पढना आदि किया जाता है किसीकी निन्दा