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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
पुनरपि मीमांसकोंका पूर्वपक्ष हैं कि उस अर्हत प्रोक्त प्रवचनसे ही यदि वेद व्याकरण,कामसूत्र आदि की उत्पत्ति मानी जाती हैं ऐसा हो जानेसे तो उन वेद आदि को अथवा उनमे क्वचित् कहे गये हिंसा, भ्रातृजायासेवन आदि के अनुष्ठान उपदेशको प्रमाणता हो जानी चाहिये जैसे कि वेदमे कहे गये दान प्रकरण अहिंसावचन आदि को प्रमाण मानलिया जाता है ग्रन्थकार कहते हैं कि यह तो नही कहना, क्योंकि जिनशासनरूपी समुद्रसे उत्पत्ति होनेपर भी वेद आदिको साररहित होनेसे प्रामाण्य नहीं हैं, जैसे कि काच, खार, संख, कौडी, आदि भी समुद्रसे उपजते हैं, खानोंसे पत्थर, कोयले, कंकड भो निकलते हैं, किन्तु निःसार होनेसे उनको अधिक मूल्य या आदर नहीं हैं।एक बात यह भी हैं कि हिंसा यदि धर्म का साधन हो जायगी तो मछली, पक्षी, पशुओंको पकडने वाले या मारनेवाले सभी हिंसकोंको अन्तररहित होकर धर्म की प्राप्ति हो जाने का प्रसंग आजावेगा, हिंसक याज्ञिक ब्राह्मरण या बकरोंकी कुर्बानी करनेवाला मुल्ला (पेशमाम) बगुला सिंह, उल्लू आदि सभी विशेषता रहित धर्मात्मा समझे जायेंगे ऐसी दशामे “अहिंसा लक्षणो धर्मः" कहना अयुक्त पडेगा।
यज्ञकर्मणोन्यत्र वधः पापायेति चेन्न, उभयत्र तुल्यत्वात् । तादात्सर्वस्येति चेन्न, साव्यत्वात् अन्य योपयोगे दोषप्रसगात् ।
हिंसाके प्रतिपादक वेदको प्रमाण मान रहे कितने ही दार्शनिक अपना मत यों पुष्ट कर रहे हैं कि यज्ञमे किया गया पशुवध पापका कारण नहीं हैं, हाँ यज्ञ कर्मके अतिरिक्त अन्य स्थलोंपर की गई हिंसा पाप के लिए मानी गई है,अत: "अहिंसा लक्षणो धर्मः" का कोई विरोध नहीं हैं । आचार्य कहते हैं कि यह तो न कहना, क्योंकि प्राणियोंको मृत्युजन्य महान् दुःखका कारण होनेसे वह हिंसा चाहे यज्ञ मे की जाय या शिकार खेलना आदिमे की जाय दोनो स्थलोंपर तुल्य रूपसे दुःख का हेतु ही है अतः फल भी समान रूपसे पापास्रव होना चाहिये या यज्ञवेदी के भीतर किया गया पशुवध (पक्ष) पाप का कारण हैं (साध्य) प्राणवियोगका कारण होनेसे (हेतु) वेदीके बाहर किये गये पशुवधके समान (अन्वयदृष्टान्त) अथवा बलिवेदी के भीतर हुई हिंसाको यदि हिंसा नहीं मानकर पुण्यसम्पादिका मानते हो तो वेदी के बाहर कसाईखानोंमें किये गये पशुवध को भी स्वर्गका साधन मान लो। यदि मीमांसक यों कहें कि
यज्ञार्थ पशवः स्रष्टाः स्वयंमेव स्वयंभुवा,
यज्ञो हि भूत्यै सर्वेषां तस्माद्यज्ञे वधोऽवधः " विधाताने सभी पशु पक्षी यज्ञ के लिये ही बनाये हैं, अतः यज्ञमे पशुओंको होम