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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
अभावो निरोध इति चेन्न, केनचित्पर्यायेणेष्टत्वात् । परोपगतस्य नीरूपस्याभावस्य प्रमाणाविषयत्वेन निरस्तत्वात्। किं च अभावस्य च वस्तुत्वापत्तेर्हेत्वंगत्वादिभ्यः । न हि हेत्वंग तु पक्षधर्मत्वादिवस्तुत्वमतिकामति । तद्वद्विपक्षे असत्वमपि हेत्वंग तथा परपक्षप्रतिषेधे पक्षांगं चाभावो निदर्शनांगं चेति तस्य वस्तुधर्मयोगाद्वस्तुत्वं । तथा प्रमाणनयविषयत्वात् कारणत्वात् कार्यत्वाद्विशेषणत्वाद्धेतोश्चेति प्रपञ्चतोभ्यूह्यं ततो न कश्चिदुपालम्भः ।
__कोई वैशेषिकमतानुयायी आक्षेप उठाता है कि अन्य चिन्ताओं का निरोध होजाना तो अभाव स्वरूप हैं, और अभाव कुछ नहीं रहना यों तुच्छ हैं। चिन्ता निरोध की दशामे चिन्तायें या ज्ञानों का अभाव होजाने से खरविषाण के समान ध्यान कुछ भी पदार्थ नहीं, ठहरा तुच्छ, शून्य, अभाव हो गया। ग्रन्थ कार कहते है कि यह तो कटाक्ष नहीं करना,क्योंकि तुच्छ अभाव को जैन स्वीकार नहीं करते हैं, अभाव भी भाव आत्मक पदार्थ है, अप्रकृत इतर चिन्ताओं को छोडकर किसी न किसी प्रकृत पर्याय से चिन्ता का बना रहना इष्ट होरहा है। रीते भूतल को "भूतले घटाभाव" माना गया है ,अन्यचिन्ता ओं के अभाव की विवक्षा करनेपर ध्यान नास्तिस्वरूप है, किन्तु विवक्षित विषय मे एक टक चिन्तन करते हुए लगे रहने की अपेक्षा करनेसे ध्यानभाव आत्मक सद्प है, यों सभी पदार्थ परचतुष्टय से नास्ति, स्वचतुष्टय से अस्ति स्वरूप व्यवस्थित हो रहे हैं। दूसरे वैशेषिक या नैयायिकों के यहाँ स्वीकार किया स्वरूपशून्य नीरूप तुच्छ अभाव का पूर्व प्रकरण मे निराकरण किया जा चुका है, क्योंकि कार्यता, कारणता, अर्थक्रियाकारित्व आदि स्वरूपों से रीते होरहे तुच्छ अभाव किसी प्रमाण के गोचर नहीं होरहे है। अतः इनका पूर्व प्रकरणो मे निराकरण किया जा चुका है, जो प्रमाण का विषय नहीं है,वह गगनकुसुम के समान असत् पदार्थ है। भावार्थ- जैनों के यहाँ प्रागभाव,प्रध्वंस, अन्योन्याभाव, और भत्यंताभाव को भाववस्तुस्वरूप स्वीकार किया गया है, अष्टसहस्री में इसका विशद वर्णन है।
एक बात यह भी है कि " द्रव्यादिषट्कान्योन्याभाववत्वम् " "भावभिन्नत्वम्" ये अभाव के लक्षण प्रशस्त नहीं है । जब कि पूर्व पर्यायस्वरूप प्रागभाव, और उत्तर पर्यायस्वरूपध्वंस तथा एक जातीय द्रव्य की पर्याय का जबतक अन्य पर्याय स्वरूप नहीं होना रूप अन्योन्याभाव, एवं एक द्रव्य का दूसरे द्रध्यस्वरूप नहीं होना आत्मक अत्यन्ताभाब ये चारों परिणाम वास्तविक है, अतः इनको वस्तु का अंग माना जाता है।