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तरकारी के समान वनस्पतियों से या अन्य जड़ी बूटियाँ आदि उपकरणों अथवा लौह यंत्रो से प्रासुक मांस नहीं बनाया जा सकता है । देखना, सूंघना, आंख नाक से ही हो सकता है। पर्याप्त मनुष्यों की उत्पत्ति माता के उदर से है । वृक्ष से नहीं । इसी प्रकार अनेक कार्य अपने कारणोंद्वारा नियतदेश, नियतकाल और नियत स्वरूप से हो रहे है, ध्यान के लिये भी अन्तर्मुहूर्त काल नियत हैं, चाहे उत्तम संहननवाला संज्ञी जीव हो अथवा भले ही हीन संहननी समनस्क प्राणी हो, अन्तर्मुहूर्त कालतक एक अर्थ में एक एक ध्यान को नहीं ठहरा सकता है । हाँ, छोटे बडे अन्तर्मुहूर्त की बात न्यारी है, अन्तर्मुहूर्त के लाखों, करोडो, असंख्याते अवान्तर भेद हैं। अपने अपने अनुभव प्रमाण ( प्रत्यक्ष ) और अनुमान प्रमाण से इस रहस्य को साथ दिया है । तथा अन्तर्मुहूर्त तक ही एक ध्यान बने रहने का निर्णय करने में सर्वोपरि सर्वज्ञ आम्नाय प्राप्त परमागम की प्रमाणता है, जो परमागम में लिखा हुआ है वह अक्षरशः सत्यार्थ है, न्यून अधिक करने की सामर्थ्य किसी को नहीं हैं ।
तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
सूत्रकार महाराज के इस सूत्र में कहे गये सिद्धान्त को निःसंशय होकर प्रमाण मान लेना चाहिये । यहाँतक इस प्रकरण को समाप्त करते हैं, अधिक प्रसंग बढाने से पूरा पड़ो, बुद्धिमानों को थोडा संकेत ही पर्याप्त है । भाष्यार्थ राजवार्तिक में परिणमन के छः प्रकार रखखे हैं, " स तु षोढा भिद्यते, जायतेऽस्ति, विपरिणमते, बर्धते, अपक्षयते, विनश्यतोति प्रथम हो अन्तरंग, बहिरंग कारणों में भाव उपजता है, पुनः उपजकर वह आत्मलाभ करता है, जैसे कि मनुष्यगति कर्म की अपेक्षा आत्मा मनुष्यपर्याय रूपसे जन्म लेना है और आयु कर्म आदि निमित्तों से अन्तर्मुहूर्त या ५०, १०० आदि वर्षों तक, मनुष्य पर्याय का अवस्थान रहता हैं, उनमें, वालक, शिशु, कुमार आदि अवस्थाओं अनुसार विभिन्न परितियाँ होती रहती है । पहिले कतिपय परिणामों को नहीं छोडते हुए अन्य शरीर अवयव, ज्ञान, इन्द्रिय, विचारशक्ति, अनुभव आदिका अधिक हो जाना वृद्धि है । वृद्ध अवस्था में क्रमसे पूर्व भावों की एकदेश निवृत्ति होजाना अपक्षय है । और गृहीत मनुष्य पर्याय को सामान्य रूपसे सर्वांग निवृत्त होजाना विनाश हैं। यों दृश्यमान पदार्थों के अनेक विभिन्न कालों की मर्यादा को लिये हुये परिगमन होते हैं । धोती को पानी में डुबोकर उठा लिया जाय, उसका पानी झट एक ही समय या निमिष में क्यों नहीं निचुड़ जाता है ? अथवा घण्टो, वर्षों, पत्यों तक पानी क्यों
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