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नवमोध्यायः
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न चान्तःकरणवृत्तिलक्षणायाश्चिताया निरोधो नियतविषयतयावस्थानलक्षणान्तर्मुहूर्तादूध्वं सम्भाव्यते मनसोस्मदादिष्वन्यविषयान्तरे सजातीये विजातीये वा संक्रमणनिश्चयात्तत्कार्यानुभवस्मरणादेः संचारान्यथानुपपत्तेः। केवलमनुत्तमसंहननस्य चितानिरोधमनल्पकालमुपलभ्य स्थिरत्वेन प्रक्षीयमाणं वावबुध्योत्तमसंहननस्यांतर्मुहूर्तकालस्तथासाविति संभाव्यते । तथा परमागमप्रामाण्यं चेत्यलं प्रसंगेन । .
चात यह है कि अभ्यन्तर इन्द्रिय होरहे मनः नामक अन्तःकरण को वृत्तिया. स्वरूप चिन्ता का नियत एक विषय में लगाकर अवस्थित करना स्वरूप निरोध करना तो अन्तर्मुहर्त से ऊपर कालतक कथमपि नहीं संम्भवता है। क्योंकि हम तुम आदि संसारी प्राणियों में मन के संक्रमण ( एक को छोड़कर दूसरे विषयों मे लग जाना ) का निश्चय हो रहा है। ध्येय विषय के समान जातिवाले सजातीय अर्थ में अथवा विभिन्न जातिवाले विजातीय न्यारे न्यारे दूसरे विषयों मे मन का झट संक्रमण होजाता है । इस साध्य का ज्ञापक अविनाभावि हेतु यह है कि उस न्यारे न्यारे विषयों मैं 'संक्रमण के कार्य हो रहे, विभिन्न अनुभव करना, स्मरण करना, प्रत्यभिज्ञान करना, आदि का संचार हो जाना मन का संक्रमण माने विना अन्य प्रकारों से बन नहीं पाता है। केवल उत्तम संहननों से रहित होरहे, आधुनिक हीनसंहननी प्राणी के अल्पकाल तक, भी नहीं ठहरने वाले चिन्तानिरोध को देखकर (समझकर) अथवा चिन्तानिरोध का स्थिरपने करके अतिशीघ्र क्षय होरहा अनुभव कर यह अनुमान प्रमाण द्वारा सम्भावना । करली जाती हैं कि उत्तम संहनन वाले प्राणी का वह ध्याम' तिसप्रकार अन्तर्मुहूर्त काल । तक ही टिक पाता है। भावार्थ- आज कल अनेक प्राणी जाप करते, सामायिक करते। हुये ध्यान लगाते हैं, किंतु चित्तवृत्ति एक विषय मे देरतक नहीं ठहरती हैं, प्राणियों । का चित्त यहाँ वहां विचलित होजाता है । अधिक पुरूषार्थ करने पर भी एक, दी। विपल, पल, सैकिण्ड तक ही कदाचित् ध्यान लग पाता है। चित्त को वहां स्थिर करना चाहते हैं किंतु चिन्ता का निरोध स्थिर नहीं रहकर क्षय को प्राप्त होजाता है। कार्य: पूर्वक किये गये दुनि भी बहुत देर तक नहीं हो पाते है, हाँ, ध्यानों को बदल बदल : कर कोई भले ही देरतक आर्तध्यानी या रौद्रध्यामी बिनाः रहो, चिन्ताओं का निरोध करना बडा कठिन कार्य है, प्रकृतिजन्य कार्यों में अधिक अन्तर नहीं पड़ता है, स्वर्ग य भोगभूमि मैं भी चना या गेहं होगा वह बीजजन्य वृक्षपर ही लगा होगा,मिडीके कल्मित च ने की यहाँ चर्चा नहीं हैं, मांस या रक्त त्रसजिवों के शरीर से ही उपजते है, भात या