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नवमोऽध्यायः
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बिनाश होजाना स्वरूप है इसप्रकार तुम्हारा, हमारा समान समाधान है, बोध्य और समाधान जब दोनों एक जाति के हैं तो जैनों के ऊपर " न जातु विच्छेदः स्यात् ' एक ध्यान का कभी विच्छेद ही नहीं होगा, ऐसा कटाक्ष करना पक्षपातपूर्ण हो समझा
जायगा ।
नन्वेवं संवत्सरादिस्थितिकमपि ध्यानं कुतो न भवेदिति चेन्न, तथा संभावना:भावात् । यद्धि यथास्थितिकं संभाव्यते तत्तथास्थितिकं शक्यं वक्तुं नान्यथा । प्रश्नावधारणेऽनुज्ञानुनयामंत्रणे ननु " बौद्ध पण्डित प्रश्न
"
उठा रहे हैं कि यदि
मानी जायगी तो इसी ध्यान भो भला क्यों
असंख्यात समयोंवाले अन्तर्मुहूर्त कालतक एक ध्यान की स्थिति प्रकार वर्ष दश वर्ष या हजार वर्ष तक स्थिति को रखने वाला नहीं हो जावेगा ? जब समय से ध्यान अधिक बढ़कर असंख्याते समयों तक अन्विष् रहता है तो वर्षोंतक भी एक ध्यान ठहर जायगा ।
आचार्य कहते हैं कि यह तो नहीं कहना, क्योंकि तिस प्रकार महिनों वर्षों त एक ही ध्यान बने रहने की संभावना नहीं है, सभी प्राणियों की मानसिक वृत्तियो चञ्चल हैं, मनसे ध्यान होता है, एक अर्थ में अन्तर्मुहूर्त से अधिक कालतक उपयोग लगा रहना असंभव है। यह व्याप्ति है कि जो पदार्थ नियम से जिस प्रकार स्थिति को लिये हुये सम्भव रहा है, उस पदार्थ के उतनी ही स्थिति का धारण करना कहा जा सकता है, अन्य प्रकारों से निरूपण करना नहीं उचित है, भावार्थ - " अन्तो मुहुत्तमेत्ता उमरगजोगा कमेण संखगुरणा " ( गोम्मटसार जीवकांड ) एक मनोयोग या वचनयोग अन्तर्मुहूर्त कालतक ठहरता है, भले ही वह अन्तर्मुहूर्त छोटा, बडा हो । भावलेश्या भी छोटे या बड़े अन्तर्मुहूर्त कालतक ठहरकर बदल जाती है, भले ही वह समान लेश्या में हो परिवर्तन क्यों न हो । उपशमसम्यग्दर्शन अन्तर्मुहूर्त तक ही ठहरता है, भारतवर्ष में सूर्य का उदय एक अयन के दिनों में साढ़े पच्चीस घटिका से लेकर साढे तीस घड़ी के अन्तर्गतकाल तक ही रहता है, सैकडो वर्षोंतक एक ही सूर्य का उदय बन्ना रह कर उतना बडा अखण्ड दिन नहीं प्रकाशता है, छह मास सूर्य दक्षिणायन रहता है, भीर छहमास तक उत्तरायण रहता है । मानव स्त्रियों के दो सौ अस्सी दिनो तक गर्भ में रहकर संतान जन्म ले लेती है। महोने, दो महीने की न्यूनता या अधिकता भले ही हो चाय, किन्तु दशों वर्षोंतक गर्भ में निवास बने रहना अलीक है । पशु पक्षियों के भिक चाति अनुसार गर्भधारण का काल न्यारा ग्यारा है । एक शरीर की स्थिति संस्पति