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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
हो जायगा, इस पर हम बौद्ध कहेंगे कि तब तो दूसरे, तीसरे आदि समयों मे ही झट ज्ञानके विच्छेदन होजाने का प्रसंग आजावेगा, बाल की बनी लेखनी यदि बीच मे से खिर जाती है तो प्रारम्भ होते हो दूसरे, तीसरे कणोंसे भी विखर सकती हैं, ऐसी दशा हो जाने पर अन्तर्मुहुर्त के अन्तिम समय के ज्ञान समान आद्यज्ञान उपजते ही दूसरे समयमे ज्ञान के टूट जाने से ध्यान का केवल एक क्षणतक ठहरना ही प्राप्त हुआ, पथार्थ ( सूक्ष्म ऋजुसूत्र नय अनुसार ) विचारने पर दीर कलिका. बिजलो, जलबबूला आदिके समान सभी घट, पट, ज्ञान, ध्यान, चेतन, अचेतन, पदार्थोका मात्र एक क्षण तक ही स्थित बने रहना स्वभाव होने करके प्रतीति हो रही है। पदार्थों का क्षणिकपने से रहित कालान्तर स्थायीपना या नित्यपना स्वरूप माननेपर अनेक बाधक प्रमाणों का सद्भाव है, अतः ध्यान : एकक्षणस्थायी.ही मानना चाहिये। यहां तक कोई बुद्धमत अनुयायी कह रहे हैं। . , .. .. ... ... ..
तेषामपि प्रथमक्षणे ध्यानस्यकक्षणस्थायित्वे तदवसानेप्येकक्षणस्थायित्वप्रसंगात् न जातुचिद्विनाशः सकलक्षगव्यापिस्थितिप्रसिद्धेः , अन्यथैकक्षगेपि न तिष्ठेत् ।
___ अब आचार्य महाराज लगे हाथ टकासा उत्तर देते है कि उन बी द्वों के यहां भी पहिले क्ष गमे उपज गये ज्ञानस्वरूप ध्यान का यदि एक क्षणतक स्थायोग्ना माना जायगा तब तो क्षण के आदि, मध्य समान अन्त मे भी एक क्षणस्थायित्व यानी एक क्षण तक टिके रहना स्वभाव बने रहने का प्रसंग आवेगा, तदनुसार वह ध्यान दूसरे समयमे भी मर नही सकता हैं, पुनः दूसरे समयके अन्तमे भी एकक्षणस्यायित्वशीन बना हो रहेगा, यों तीसरे क्ष गमे भी ज्ञान का बाल बॉ का नही हो सकता है, इसी धारा अनुसार ज्ञान अनेक वर्षों या अनन्तकाल तक टिकाउ हो जायगा, यों तुम्हारे समान सूक्ष्मदृष्टी से बाल को खाल निकालने पर किसो भो पदार्थ का कभी विनाश नहीं हो पायगा। फेंके गये डेल या गोला चलते ही चले जायंगे, कहीं रुकेंगे नहीं आदि, मध्य के वेग जैसे क्रिया को उपजाते हैं तद्वत् २ प्राचीय वेग भी धाराप्रवाह क्रियाको उत्पत्ति करते रहेंगे। अथवः क्रियोत्पत्ति नहो मानने वालों के यहां स्वलक्षण ही उत्तरोत्तर अनंत प्रदेशोंपर उसन्न होता चला जायगा। सम्पूर्ण अनादि अनन्त क्षणों मे व्याप रहे पदार्यों को स्थिति बने रहना प्रसिद्ध हो जायगा, अन्यथा यानी समयके अन्तमे ज्ञानका नाश मानोगे, तब तो समयके आदि मे ही ज्ञान क्यों नहीं नष्ट हो जाय? ऐसी दशामें वह ज्ञान एक पूरे क्षण भी नही ठहर पायेगा, तुम्हारा क्षणिकपना ( द्वितियक्ष रावृत्ति ध्वन्सप्रतियोगित्वं ) भी हाथसे निकल जाता है।