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नवमोध्यायः
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चिन्ताओं का निरोध करना ध्यान नहीं हो सके इस कारण सूत्र में इतर की व्यावृत्ति करते हुये सूत्रकार ने एक अग्रमें वह चिन्ताओं का अन्यत्र से निरोध होकर केन्द्रीभूत हो जाना ध्यान कहा है यों भले प्रकार सर्वज्ञ आम्नाय अनुसार स्मरण कर कह दिया है। अर्थात् अन्तर्मुहूर्त तक घट, पट आदि अनेक पदार्थों में ज्ञान धारा को उपजाते रहना ध्यान नहीं है क्योंकि सूत्र में एक अर्थ में ऐसा पद पड़ा हुआ है। और अग्निर्माणवकः, अयं मनुष्यः सिंहः, इत्यादि स्थलों के अविवक्षित या आरोपित गौण अर्थ में एक टक होकर चिन्ता को रोके रहना ध्यान नहीं है कारण कि सूत्र में मुख्य अर्थ को कहनेवाला अग्रपद पड़ा हुआ है तथा मिट्टी की बनी हुई गाय, घोडा, या अवस्तुभत कल्पित अर्थ में ध्यान लगा बैठना कोई ध्यान नहीं है क्यों कि वास्तविक अर्थ को कहनेवाला अग्रपद सूत्र में उपात्त है।
एक बात यह भी है कि अनेक अर्थों को मुख्य करके उनमे चिन्ताओं को रोके रहना ध्यान हो जायगा इसकी निवृत्ति के लिये सूत्रमें " एकाग्रेचिन्तानिरोधः," ऐसा कह दिया गया है वायुवेगरहित अवस्था में प्रदीपशिखा जिस प्रकार अचल है उसी प्रकार क्वचित् एक ही अचल अर्थ में ध्यान लगा रहना चाहिये । प्रदीप की या सूर्य की प्रभा जिस प्रकार अनेक अर्थों में उन्मुख हो जाती है उस प्रकार अनेक अर्थों मे उन्मुख हो रही ज्ञानधारा की ध्यानपने करके व्यवस्था नहीं नियत है।
एकशब्दः संख्यापदं, अंग्यते तदंगति तस्मिन्निति वाग्रं मुखं, भद्रेदान विप्रेत्यादि निपातनात्, अंगेर्गत्यर्थस्य कर्मण्यधिकरणे वा रग्विधानात् । चिन्तान्तःकरणबत्तिः अनियतक्रियार्थस्य नियतक्रियाकर्तुत्वेनावस्थानं निरोधः एकमग्रं मुखं यस्य सोयमेकाग्रः चिन्ताया निरोधः एकाग्रश्चासौ चिन्तानिरोधश्च स इत्येकाग्रचिन्तानिरोधः।
इस सूत्रमें कहा गया एक शब्द तो संख्यावाची पद है अर्थात् असहाय, अनुपम, केवल, असाधारण, अभेद, एकत्वसंख्या, केचित् आदिक अनेक अर्थों के सम्भव होनेपर यहां प्रकरण में एक शब्द एकत्व संख्यों को कहनेवाला लिया गया है। और अंग का अर्थ यह है कि गति अर्थ में वर्त रही “ अगि" धातु से कर्म या अधिकरण में रक् प्रत्यय कर अग्र शब्द को सिद्ध किया गया हैं गति अर्थक धातुओं का ज्ञान भी अर्थ हो जाता है। उसको ज्ञात किया जाय अथवा ज्ञान द्वारा उस में स्वीकृति प्राप्त की जाय इस कारण अग्र का अर्थ मुख हो जाता है " भद्रेन्द्राग्रविप्र" इत्यादि सूत्र करके निपात हो जानेसे गत्यर्थ अगिधातु से कर्म वा अधिकरण में रक् प्रत्यय का विधान किया गया है पदार्थों में अन्तःकरण मन की वृत्ति हो जाना चिन्ता है चलना, सोना,