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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
घटादिक के समान वह अर्थ का ग्राहक ( ज्ञापक ) नहीं हो सकता है। ज्ञान जब कभी होगा तब स्वसंविदित प्रत्यक्षाक्रान्त ही होगा।
प्रदीपादिवदस्वसंविदितेपि विषयग्राहित्वं ज्ञानवृत्तीनामविरुद्ध मिति चेन्न, वैषम्यात् । प्रदीपादिद्रव्यंहि नार्थग्राहि स्वयमचेतनत्वात् । किं तर्हि ? चक्षुरादीरूपादिग्राहि ज्ञानकारणस्य सहकारितयार्थग्राहीत्युपचर्यते न पुनः परमार्थतस्तत्र तथा । ज्ञानवृत्तयत्तु तत्वतोर्थग्राहिण्य इष्यन्ते ततो न साम्ययुदाहरणमस्येति नास्वसंविदितत्वसिद्धिस्तासां दर्शनवत्।
यदि मीमांसक को ढाढस बंधानेवाला समझकर यौग पुनः यों कहे कि अपना स्वसंवेदन प्रत्यक्ष नहीं होते हुये भी मूर्त ज्ञानवृत्तियों प्रदीप, सूर्य, चक्षुरिन्द्रय भादिके समान होकर विषयों की ग्राहिका हो जावेगो, कोई विरोध नहीं पड़ता है।
आचार्य कहते हैं कि यह तो नहीं कहना। क्योंकि आपके दिये हुये प्रदीप भादि दृष्टान्त विषम हैं। देखिये वस्तुतः विचारा जाय तो यही निर्णीत होगा कि स्वयं भचेतन यानी जड होने के कारण प्रदोप आदिक द्रव्य तो अर्थों को ग्रहण करनेवाले नहीं हैं, तब तो " प्रदीपेन, चक्षुषा, सूर्येण, वा ज्ञायते" यों प्रदीप आदि को ज्ञान (प्रमिति ) की करणता कैसे हैं ? इसका समाधान यही है कि रूप, रस भादि को ग्रहण करनेवाले करण भूत ज्ञानके सहकारी कारण हो जाने से चक्षुः, प्रदीप आदिक पदार्थ विचारे अर्थ के ग्राहकपने करके उपचरित किये जा रहे हैं, करण के कारण को करण कह दिया गया है, जैसे कि पिता के पिता को कोई पौत्र विचारा पिता कह देता है। परमार्थरूप से फिर वे प्रदीपादिक तो अर्थ के ग्राहक नहीं हैं। हाँ, ज्ञानवृत्तियाँ तो सात्त्विक वास्तविक रूप से अर्थोके ग्रहण करलेने की टेव को धरनेवाली इष्ट की गई है, इसी प्रकार चक्ष, सूर्य, अञ्जन, ममीरा मे भी समझ लेना। तिसकारण आप का प्रदीप उदाहरण उन ज्ञानवृत्तियों के मूतं होनेपर भी अर्थ को प्रहण करने में सम नहीं है विषम है।
इस प्रकार उन ज्ञानवृत्तियों का अस्वसंविदितपन सिद्ध नहीं होता है जैसे कि सत्ता का आलोचन करनेवाला दर्शन स्वसंविदित नहीं है, वैसा ज्ञान को नहीं समझ बैठना, ज्ञान तो वस्तुतः स्वसंविदित ही हैं " स्वोन्मुखतया प्रतिभासनं स्वस्य व्यवसायः" विषय को ग्रहण करते समय ज्ञान अपना स्वसंवेदन तत्काल ही कर लेता है ( ज्ञान का उपजना ही स्वसंवेदन स्वरूप है, चाहे मिथ्याज्ञान हो चाहे सम्यग्ज्ञान हो तत्क्षण हो स्वको जानने में सभी प्रमाण हैं)।