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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
अब ग्रन्थकार कहते हैं कि यह सिद्धांत तो ठीक नहीं है जिसकारण से जो दृष्टा होगा वह ज्ञानवान् अवश्य होगा ज्ञान और दर्शन का सहयोग होकर अविनाभाव है। महासत्ताका आलोचनस्वरूप दर्शनका होना साकारोपयोग ज्ञानसे संबद्ध है, छद्म स्थोंके दर्शन पूर्वक ज्ञान होता है और सर्वज्ञ महाराजके दर्शन, ज्ञान, युगपत् हो जाते हैं दिनके अवसरपर दिनकरके प्रखर प्रताप में जैसे तारानिकरका मन्दतर उद्योत भी सम्मि लित है, उसी प्रकार केवल ज्ञानके साकार चैतन्यमे लोकालोक वितिमिरकेवलदर्शननामक उद्योत भास रहा है।
तथाहि--ज्ञानवानात्मा द्रष्टत्वात् यस्तु न ज्ञानवान् स न दृष्टा, यथा कुंभादि दृष्टा चात्मा ततो ज्ञानवान् । प्रधानं ज्ञानवदिति चेन्न, तस्यैव द्रष्टत्वप्रसंगाद द्रष्टुर्ज्ञानवत्ताभावात् कुम्भादिवत् । ज्ञानवत्वे पुरुषस्यानित्यत्वापत्तिरिति चेन्न, प्रधान स्याप्यनित्यत्वानुषक्तेः। तत्परिणामस्य व्यक्तस्यानित्यत्वोपगमाददोष इति चेत्, पुरूष पर्यायस्यापि बोधविशेषादेरनित्यत्वे को दोषः ? तस्य पुरुषात् कथंचिदव्यतिरेके भंगुरत्वप्रसंग इति चेत्, प्रगानाद्व्यक्तं किमत्यन्तव्यतिरिवतमिष्टं येन ततः कथंचिदव्यतिरेकादनित्यता न भवेत् ।
___ इस ही आत्माके ज्ञान और दर्शन दोनों स्वभावोंको युक्तियों द्वारा ग्रन्थकार पुष्ट कर रहे हैं । आत्मा ( पक्ष ) ज्ञानवाला हैं ( साध्यदल ) दृष्टा होनेसे ( हेतु ) जो जो दृष्टा नहीं है वह तो ज्ञानवान् भी नहीं है जैसे कि घट, पट आदिक जड पदार्थ हैं ( व्यतिरेकदृष्टान्त ) दृष्टा आत्मा है ( उपनय ) तिस कारण ज्ञानवान् हैं ( निगमन ) यो पांच अवयववाले परार्थानुमान करके आत्मामें ही ज्ञानको सिद्ध किया गया है।
यहाँ कपिल मतानुयायी आक्षेप उठाता है कि आत्मामे ज्ञान नहीं हैं ज्ञानवान तो प्रधान ( प्रकृति ) है । ग्रन्थकार कहते हैं कि यह तो नहीं कहना । क्योंकि यदि प्रधान में ज्ञान माना जायगा तो उस प्रधानको ही दृष्टा हो जानेका प्रसंग आ जावेगा, दष्टापन और ज्ञान का सामानाधिकरण्य है । जो दृष्टा नहीं है उसके ज्ञानाधिकरणपने का अभाव हैं, जैसे कि घट, पट आदिक जड पदार्थ दृष्टा नहीं होने के कारण ही ज्ञानवान् भी नहीं हैं।
तनः कपिलमतानुयायी कह रहे हैं कि जीवों के हो रहे घटज्ञान, पटज्ञान आदिक अनित्य है,यदि आत्मा को ज्ञानवान् स्वीकार किया जायगा तब तो विनाशी ज्ञानके साथ नादात्म्य हो जाने से आत्माको भी अनित्यपनकी अनिष्ट आपत्ति बन बैठेगी, आत्माका ज्ञान के साथ क्षणक्षणमे उपजना, मरमिटना, ऐसा अनित्यपन किसीने नहीं माना है।