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नवमोध्यायः
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निरोधः कषायास्रवस्य तन्निरोधे निरासः, केवलयोनिमित्तं सद्वेद्यं तदभावे तस्य निरोध इति सकलसंवरो अयोगकेलिनः । सयोगकेवल्यंतेषु गुणस्थानेषु देशसंवरः प्रतिपत्तव्यः ।
___ अब उन गुणस्थानों में कर्मों का संवर यथाक्रम से कहा जाता है। मिथ्यात्व को प्रधान कारण मानकर पहिले गुणस्थान में जो सोलह कर्म आ रहे हैं उस मिथ्यात्व के उदय का अभाव हो जाने पर दूसरे आदि सभी गुणस्थानों में उनका संवर हो रहा समझ लेना चाहिये वे सोलह प्रकृतियां ये हैं।
मिच्छ नहुंडसंढाऽसंपत्तयकथावरादावं ।
सुहुमतियं वियलिंदी, णिरयदु गिरयाउगं मिच्छे ।।
मिथ्यात्व, हुंण्डकसंस्थान, नपुंसकवेद, असंप्राप्तासृपाटिकासंहनन, एके. न्द्रियजाति, स्थावर, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिंद्रियजाति, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्व्य, नरक आयुष्य १६ ।
जैनसिद्धान्त में अनन्तानुबन्धी कषायका उदय और उ.प्रत्याख्यानावरण कषायका उदय उत्तथा प्रत्याख्यानावरण वषाय का उदय, इन भेदों से असंयम के तीन प्रकार माने गये हैं। दूसरे गुणस्थान में अनन्तानुबंधी की प्रधानता से अनन्तानुबंधी क्रोध आदि पच्चीस प्रकृतियों का आस्रव हो रहा है उस अनन्तानुबन्धी के उदय का अभाव हो जाने पर तीसरे आदि सभी गुणस्थानों में अनन्तानुबंधी चार, स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, चार बीचके संस्थान, चार बोचके संहनन, अप्रशस्तविहायोगति, स्त्रीवेद, नीचर्गोत्र, तिर्यग्गति, तिर्यग्गत्यानुपूर्व्य, तिर्यगायुष्य, और उद्योत, इन पच्चीस प्रकृतियों का संवर हो जाता है। अप्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय की प्रधानता से चौथे गुणस्थान तक अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, मनुष्य आयु, मनुष्यगति, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्व्य, औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, वजऋषभनाराच संहनन, इन दश प्रकृतियों का आस्रव हो रहा है। उस प्रत्याख्यानावरण के उदय का अभाव हो जाने पर ऊपरले पांचवें आदि गुणस्थानों में इनका संवर हैं । तीसरे गुणस्थान में किसी आयु का बन्ध नहीं है । तीसरी प्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय को प्रधान कारण मानकर प्रत्याख्यान सोध, मान, माया लोभ इन चार प्रकृतियों का आस्व होता है। पांचवें गुणस्थान से ऊपर छठे आदि गुणस्थानों में इनका संवर है। छठे प्रमत्तगुणस्थान में प्रमाद की प्रधानता से प्राप्त हो रहीं असद्वेद्य, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ, अयशस्कीर्ति इन छह प्रकृतियों का आस्रव हो रहा है उस प्रमाद के हट जाने पर सातवें आदि गुणस्थानों में इनका आस्वनिरोध हो जाता है। देव आयु का बंध सातवें गुणस्थान तक होता है। उसके ऊपर देव आयु का संवर है। केवल कषाय को ही कारण मानकर निद्रा, प्रचला, देवगति आदिक