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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
पानो में सर्वत्र फैल जाता है अथवा दूध स्वयं जल और मावा का विचित्र प्रकार का संमि. श्रण है। गाय के थन में अलौकिक रासायनिक प्रक्रिया द्वारा उन का एकम एक सर्वांग संश्लेष हो रहा है। कर्म और आत्मा का एक क्षेत्र में ही संश्लेष है। बंध के लिये क्षीर नीर का दृष्टान्त बहुत अच्छा है। अरण्यगोमय की राख में पानी घुस जाता है। उटनी के दूध में उतना ही मधु सर्वाङ्ग अनुप्रविष्ट हो जाता है।
सूक्ष्मेत्यादि निर्देशेन कि कृतमित्याह
उक्त सूत्र में सूक्ष्म एक क्षेत्रावगाह इत्यादि पदों के कथन करके क्या फल किया गया है ? ऐसी जिज्ञासा प्रवर्तने पर ग्रंथकार इन अग्रिम वार्तिकों को कह रहे हैं।
सूक्ष्मशब्देन च योग्यस्वभावग्रहणाय ते। पुद्गलाः प्रतिपाद्यन्ते स्थूलानां तदसंभवात् ॥४॥
सूत्रोक्त सूक्ष्म शब्द का उपादान करना तो ग्रहणयोग्य पुद्गलों के स्वभाव का प्रतिपादन करने के लिये है । यों सूक्ष्म शब्द करके ग्रहणयोग्य स्वभाव के लिये वे पुद्गल कहकर समझाये जाते हैं। स्थूल पुद्गलों की उस योग द्वारा ग्रहण हो जाने की योग्यता का असंभव है । अतः आत्मा करके ग्रहण करने योग्य पुद्गल सूक्ष्म हैं, स्थूल नहीं हैं ।
सूक्ष्मग्रहणं ग्रहणयोग्यस्वभावप्रतिपादनार्थमिति वचनात् ।
इस सूत्र में सूक्ष्मपद का ग्रहण करना तो ग्रहणयोग्य पूद्गलों के स्वभाव का प्रतिपादन करने के लिये है, इस प्रकार राजवार्तिक ग्रन्थ में वचन मिलता है। अतः योग द्वारा सूक्ष्मवर्गणाओं का आकर्षण होना समझ लिया जाय । यद्यपि धुआं, पानी, वायु आदि स्थल पदार्थों को भी कुछ दूर से जीव खींच लेता है। मोटे, मोटे कौरों का आहार करता है, फिर भी यह नोकर्म का ग्रहण है, कौर आदि पदार्थों में आहारवर्गणायें छिपी हुई हैं। । कर्म बनने योग्य कार्मण वर्गणायें या उनकी परमाणुयें तो सूक्ष्म हैं। स्थूल स्कन्धों से सूक्ष्म - कर्म बनना असंभव है।
एकक्षेत्रावगाहाभिधानं क्षेत्रांतरस्य तत् ।
निवृत्यर्थं स्थिताः स्यात्तु क्रियांतरनिवृत्तये ॥५॥ उक्त सूत्र में उस “ एकक्षेत्रावगाह" वाक्य का निरूपण करना तो अन्य क्षेत्र