________________
अष्टमोध्यायः
( १०२
अच्छा कहा था कि कर्म के प्रदेश परमाणुयें स्कन्धपने करके परगतिविशेष से नियत कहे गये नाम के कारण हो रहे कोई विरोध को प्राप्त नहीं होते हैं, कारण कि वास्तविक रूप से प्रमाणों करके स्कन्ध मानने पर ही सम्पूर्ण पदार्थों का ज्ञान हो सकता है । यहाँ तक इस व्याख्या को समाप्त कर दिया गया है । अब किसी जिज्ञासु का प्रश्न है कि आत्मा के सम्पूर्ण प्रदेशों में वे प्रदेश बंध जाते हैं, सूत्र में इस प्रकार किस लिये कहा गया है ? बताओ । इस प्रकार जिज्ञासा प्रवर्तने पर तो ग्रन्थकार महाराज करके उत्तर कहा जाता है । सर्वेष्वात्मप्रदेशेषु न कियत्सुचिदेव ते । तत्फलस्य तथा वित्तेनीरे क्षीरप्रदेशवत् ॥ १ ॥
आत्मा के सम्पूर्ण असंख्याता संख्यात प्रदेशों में वे कर्मप्रदेश बंधते हैं कितने ही एक कुछ थोड़े से दो, चार, दश, वीस प्रदेशों में ही प्रदेशबंध नहीं होता हैं ( प्रतिज्ञा ) क्योंकि उन कर्मों के फल का तिस प्रकार सम्पूर्ण आत्मा में परिज्ञान हो रहा है (हेतु) जैसे कि जल में दूध मिला देने से जल में सर्वाङ्ग दूध का प्रवेश हो जाता है ( दृष्टान्त) अथवा जल में दूध के प्रदेश सर्वात्मना प्रविष्ट हो जाते हैं ।
यथैव हि सर्वत्र कलशोदके क्षीरमिश्रे क्षीररसविशेषस्य फलस्योपलब्धेः सर्वेषु तदुदकप्रदेशेषु क्षीरसंश्लेषः सिद्धस्तथा सर्वेषात्मप्रदेशेषु कर्मफलस्याज्ञानादेरुपलंभात् कर्मप्रदेश संश्लेषः सिद्ध्यतीति सूक्तमिदं सर्वात्मप्रदेशेष्विति वचनमेकप्रदेशाद्यपोहार्थमिति ।
जिस ही प्रकार कलश के दूध मिले हुये जल में सर्वत्र दूध के रस विशेष हो रहे फल की उपलब्धि होती हैं । अतः जल के उन सम्पूर्ण प्रदेशों में दूध का संसर्ग हो जाना सिद्ध है, तिस ही प्रकार आत्मा के सम्पूर्ण प्रदेशों में कर्म के फल हो रहे अज्ञान, दुःख आदि का अनुभव होने से कर्मों का प्रदेशबंध हो जाना सिद्ध हो जाता है । इस कारण सूत्रकार ने एक, दो, प्रदेश आदि में ही बन्ध हो जाने के निवारणार्थ आत्मा के सम्पूर्ण प्रदेशों में बन्ध होना यह कथन बहुत अच्छा युक्तिपूर्ण कह दिया है। यहां यत्किचित् यह भी कहना है कि चालीस तोला जल भर जाने वाले पात्र में वीस तोला जल है, ऐसी दशा में पात्र आधा भरा है, आधा खाली है । यदि उसी पात्र में वीस तोला दूध डाल दिया जाय तो पात्र भर जाता हैं, जबकि जल देशान्तर में चला गया तो ऐसी दशा में जल में सर्वांग दूध नहीं मिल सका जैसे कि वीस तोला दूध में दो तोला बूरा सर्वाङ्ग मिल जाता है फिर भी कि पद्धति अनुसार यह दृष्टान्त ठीक है । पानी में दूध डाल देने से विलोडे विना ही वह दूध