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शिवकुमार के छोटे भाई विजयादित्यके पुत्र राचमल्ल तथा सत्यवाक्यके समकालिन थे । मान्य कामताप्रसाद जैन, महेंद्रकुमार शास्त्री और दरबारीलाल कोठिया आदि पंडित प्रवरोंके कथनानुसार 'आप्तपरीक्षा,' 'प्रमाणपरीक्षा' युक्त्यनुशासनालंकारोंमें विद्यानंदने परोक्षरूपमें (x) 'विजयादित्य' तथा सत्यवाक्योंके नामोंका उल्लेख किया है । इसके अलावा (x) राचमल्ल सत्यवाक्य दोनोंका अमोघवर्ष के सेनानी 'बंकेश' से युद्ध में सामना करने की बात भी उल्लिखित है ।
अब यहां इस विषयसे संबंध रखनेवाली एक बातको कहना आवश्यक होगा। ज्यादातर कर्नाटक प्रांतमे — नोम्पी' ( व्रताचरण ) करनेकी धार्मिक परिपाटी ( प्रथा ) बहुतकाल पहिले से ही चलती आ रही है। इन व्रताचरणोंसे संबंधित नोंपी कथाएं ' ( व्रत कथाएं ) विशेषतः प्रचार में हैं। उन कथाओंमें ' नागस्त्री नोंपी कथा' भी एक है। इसमें लिखा है कि ' तेरदाळ । के राजा बंकभूपने विद्यानन्दी और माणिक्यनन्दी नामक दो मुनियोंको आहार देने के पश्चात् उनसे 'नागस्त्री ' नोंपी ( व्रत ) का ग्रहण किया था। परंपरासे अकृत्रिमरूप में चले आए इस कथन को ऐतिहासिकता ' के बारेमे कोई संदेह नहीं उठता । क्योंकि इस — नोंपी कथा ' के आधार पर लिखा हुआ मेरा विश्लेषणात्मक एक लेख “सन्मति पत्रके अप्रैल, मई १९८० के अंक के पृष्ठ ९४-१०० में प्रकट हुआ है। विद्यानन्दी द्वारा परोक्षरूप में सत्यवाक्य तथा राचमल्लकी जो सूचना मिलती है, राचमल्ल द्वारा बंकेशका सामना करनेकी बात करेगोडे रंगपुरके ताम्रपट शासनके कथनोंसे जब समन्वय रखती है तो इससे नोंपी कथाकी ऐतिहासिकता को और भो पुष्टि मिल जाती है । इन सब बातोंसे एक बात दृढ हो है कि विद्यानन्दी और माणिक्यनन्दी मुनि दोनों साधर्मी भ्राता बनकर बंकरस । बंकेश ], अमोववर्ष, राचमल्ल, सत्यवाक्य इनके समकालीन थे, और इन दोनों ( विद्यानन्दी, माणिक्यनन्दी ) का जीवित काल प्रायः ई. सन आठवी और नौवी शताब्दीके मध्यवर्ती कालमें रहा होगा। अर्थात् ई. सन ७७५ से ७८० के बीचमें होगा ।
षट्खंडागम की धवला तथा कषाय पाहुडकी जयधवला साख्याके प्रथम भागके रचयिता सुप्रसिद्ध सिद्धांतकेसरी श्री वीरसेनाचार्य भी इसीकालमें जीवित थे । विद्यानन्दी मुनिके कालके बारेमें यह निर्णय यद्यपि सर्वसंमत माना जाता है फिर भी विद्यानन्दीके धर्मभ्राता माणिक्यनन्दीके कालके बारेमे मान्य न्यायाचार्य पं. दरबारी लाल कोठियाने आपकी लिखी आप्तपरीक्षा की प्रस्तावना ( पृष्ठ २७ से ३३ ) में माणिक्यनन्दी, ' सुदसण चरिउ ' के रचयिता ' नयनन्दी । और प्रमेयकमलमार्तड के रचयिता ' श्री प्रभाचन्द्र के साक्षात् गुरू थे और ' उनका जीवितकाल ई. सन ९९३ से १०५३ के बीचमें होगा ' ऐसा अपने विचारका मण्डन किया है । परन्तु उन्हींकें कथनानुसार तथा विभिन्न शिलालेखोंके आधार पर प्रमेय कमलमार्तंड ' के रचयिंता श्री प्रभाचंद्र पद्मनन्दी सैद्धांती ( ऋषभनन्दी ) तथा चतुर्मुख देवके शिष्य थे । प्रभाचन्द्र माणिक्यनन्दीके साक्षात्
(x) पिछले पृष्ठके वाल्यूम में ही पृ. सं. ११ पर । (x) ,, , , पृ. सं. १३ पर।