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श्लोक - बार्तिक
ख्यातप्रदेशीपना भला किस प्रमाण से प्रसिद्ध होजाता है ? ऐसी जिज्ञासा होने पर श्री विद्यानन्द आचार्य अग्रिम वार्तिकों द्वारा समाधान का निवेदन करे देते हैं ।
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प्रतिदेशं जगद्व्योमव्याप्तयोग्यत्वसिद्धितः । धर्माधर्मैकजीवानामसंख्येयप्रदेशता ॥ १ ॥ लोकाकाशवदेव स्यावासंख्येयप्रदेशभूत् । तदाधेयस्य लोकस्य सावधित्वप्रसाधनात् ॥ २ ॥ अनन्तदेशतापायात् प्रसंख्यातुमशक्तितः ।
न तत्रानंतसंख्यात प्रदेशत्वविभावना ॥ ३ ॥
लोक-सम्बन्धी श्राकाश के प्रत्येक प्रदेशों पर व्यापने की योग्यता की सिद्धि होजाने से धर्म, अधर्म, और एक जीव के प्रसंख्यात प्रदेशों से सहितपना है, धर्म और अधर्म से घिरा हुआ तथा एक एक जीव से घिर जाने योग्य यह परिमित जगत् बेचारा लोकाकाश के समान ही प्रसंख्यातासंख्यात प्रदेशों को धार रहा है, क्योंकि जिस अधिकरणभूत लोक के धर्म, अधर्म और एक जीव द्रव्य, ये प्राधेय होरहे हैं, उस लोक का छहों और अवधि - सहित पना बढ़िया साध दिया है। अनन्त प्रदेशीपन का प्रभाव होजाने से इन तीन द्रव्यों के अन्त प्रदेशों से सहितपन का विचार करना नहीं चाहिये । और एक, दो, तीन, चार श्रादि ढंग से बढिया गिनती करने के लिये सामर्थ्य नहीं होने से सख्यात प्रदेशीपन का भी विचार नहीं करना चाहिये। तब तो अनन्त और संख्यात से शेष बचे असंख्यात प्रदेश ही इन तीन द्रव्यों में स्वीकार करने याग्य हैं. जगत् श्रणी के घन-प्रमारण मध्यम असंख्याता संख्यात प्रदेश धर्मादिकों के प्रसिद्ध होजाते हैं ।
नायं लोको निरवधिः प्रतीतिविरोधात् । पृथव्या उपरि सावधित्वदर्शनात् पार्श्वतोधस्ताच्च सावधित्वसंभवनात् तद्वदुपरि लोकस्य सावधित्व सिद्धेः । सर्वतः अपर्यंता मेदि - नीति साधने सर्वस्य हेतोरप्रयोजकत्वापत्तेः । प्रसिद्धे च सावधौ लोके तदधिकरणस्याकाशस्य लोकाकाशसंज्ञकस्य सावधित्वसिद्धेः ।
यह लोक छहों श्रोर मर्यादारहित नहीं है । मर्यादारहित मानने पर समीचीन प्रतीतियों से विरोध आजावेगा क्योंकि पृथ्वी के ऊपर मर्यादासहितपना देखा जाता है, और पसवाड़ों में या नीचे भी अवधिसहितपन की सम्भावना होरही है, इसी प्रकार ( के समान ) अधिक ऊपर देशों में भी लोक का अवधिसहितपना सिद्ध होजाता है । " यह पृथवी सब ओर से पर्यन्तरहित है, " इस बात को साधने में जितने भी हेतु दिये जावेंगे, अपने अपर्यन्तपन साध्य के साथ अनुकूल तक नहीं मिलने के कारण सभी हेतु के अप्रयोजकपन का प्रसंग आजावेगा यों वे अपने साधन को नहीं साध सकेंगे । अतः इस लोक के अवधिसहितपन की प्रसिद्धि होजाने पर उस जगत् के अधिकरण होरहे लोकाकाश नामक प्रकाश का अवधिसहितपन सिद्ध होजाता है ।