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श्लोक-चार्तिक । ... अब सबसे प्रथम आदि में होने वाले अहिंसाव्रत की पाँच भावनायें सूत्रकार द्वारा कहीं जा
वाङ्मनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपरणसमित्यालोकितपानभोजनानि पंच ॥४॥
वचनगुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति, आदान निक्षेपण समिति और आलोकितपान भोजन ये पाँच अहिंसाव्रत की भावनायें हैं । अर्थात् वचन का गोपन करना, मन का गोपन करना, चार हाथ भूमि निरख कर संयम पालते हुये गमन करना, देख कर उठाना धरना, सूर्य प्रकाश में खान-पान करना, ये पाँच भावनायें यानी सद्विचार सर्वदा रहेंगे, तो अहिंसाव्रत स्थिर रहा आवेगा।
कथमित्याह
कोई तर्क उठाता है कि ये पाँच किस प्रकार अहिंसाव्रत को स्थिर कर देते हैं। बताओ। इस प्रकार जिज्ञासा प्रवर्तने पर ग्रन्थकार उत्तर कहते हैं।
स्यातां मे वाङमनोगुप्ती प्रथमव्रतशुद्धये ।
तथेर्यादाननिक्षेपसमिती वीक्ष्य भोजनः ॥१॥
पहिले या प्रधान अहिंसा व्रत की शुद्धि के लिये मेरे वचनगुप्ति और मनोगुप्ति हो जावें तथा ईर्यासमिति, आदाननिक्षेपणसमिति और दिन में निरखकर भोजन, पान करना ये क्रियायें होवें ऐसी भावनायें भावने से मेरे या किसी भी भावुक आत्मा के अहिंसाव्रत पुष्ट होता रहेगा।
इति मुहुर्मुहुश्चेतसि संचिंतनात् । इस प्रकार चित्त में बार-बार अच्छा चिंत न करते रहने से भावित आत्मा व्रतों में दृढ़ हो
जाता है।
काः पुनर्द्वितीयस्य व्रतस्य भावना इत्याह
फिर दूसरे सत्यव्रत की भावनायें कौनसी हैं ? ऐसी जिज्ञासा प्रवर्तने पर सूत्रकार इस अग्रिम सूत्र को कहते हैं।
क्रोधलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचीभाषणं च पंच ॥५॥
क्रोध का त्याग, लोभ का त्याग, भयभीत हो जाने का त्याग, हास्य करने का त्याग और निर्दोष या आर्षशास्त्रानुसार भाषण करना ये पाँच भावनायें सत्य व्रत की जान लेनी चाहिये अर्थात् क्रोध के वश होकर जीव झूठ बोल जाता है । लोभी मनुष्य भी धन आशा के वश असत्य बोल जाता है, डर में आकर झूठ बोलना प्रसिद्ध ही है । हंसी ( मज़ाक, नकल, दिल्लगी ) करने में तो प्रायः असत्य ही बोला जाता है। अतः इनका परित्याग करना आवश्यक है। विचार कर अनुकूल बोलने की टेव रखने से सत्य व्रत