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________________ छठा-अध्याय ४८९ बन सकता है कारण कि उन प्रदेशों की अधिकरणभूत विषयता के परिज्ञान का अयोग है जैसे कि उससे भिन्न पड़े हुये दूरवर्ती उदासीन विषयों में प्रदोष आदि नहीं उपजते हैं। भावार्थ-किसी आक्षेपक ने यहाँ उक्त हेतु का उन प्रदोष आदि से व्यभिचार उठाया था जो कि अशुद्ध दुर्गन्ध, घृणित, मलमूत्र, आदि पुद्गलों में प्रदोष आदि हुये हैं क्योंकि वे प्रदोष आदि तो हैं किन्तु दुर्गन्ध मल मूत्र आदि में कोई पुद्गलों का आस्रव नहीं होता है और न हाथ, पांव, आवरण ही उन पुद्गलों में आस्रवित होजाते हैं प्रत्युत उन दुर्गन्ध पदार्थों से भिन्न होरहे प्राणियों के हाथ, पांव, आदि में गतियां उन से होजाती हैं । कोई व्यक्ति तो दुर्गन्ध पदार्थों से घृणा कर भाग जाता है, कोई हाथ को नाक से लगा लेता है। इस व्यभिचार का निवारण करने के लिये ग्रन्थकार ने यों कहा है कि दुर्गन्ध पदार्थ के अंश नाक में आये हैं तभी अन्य प्राणियों के हाथ, पांव, आदि में क्रिया होकर अपनी नाक को उन से ढक लिया गया है अपने घृणा आदि दोषों के बिना बाह्य पदार्थ में प्रदोष आदि नहीं होपाते हैं, धृणा नहीं करनेवाले या दुर्गन्ध में निवास करने वाले जीवों को उस पदार्थ के अनिष्ट गन्धपन का परिज्ञान नहीं होने पाता है अतः यह बात सिद्ध होजाती है कि जिस आत्मा के जिस विषय में प्रदोष आदि होंगे उस आत्मा को उस विषय के आवारक पुद्गलों का समागम करा ही देवेंगे, मात्सर्य करने से शरीर के अवयवों में क्रिया होजाती है जैसे कि समझाने वाले वक्ता को श्रोताओं या प्रमेय अथवा आवेश के अनुसार चेष्टायें करनी पड़ती हैं । आसादन और उपघात करने पर टेढ़े मेढ़े हाथ, पांव, नसें, हृदय की धड़कन आदि क्रियायें करते हुये पौद्गलिक अवयवों में प्रेरणा होजाती है । क्रोध करने वाला जीव झट, लाठी, बेंत आदि को पकड़ता है या क्रोध पात्र पर थप्पड़ या धूंसा मार देता है। गुणी पुरुषों को देख कर विनीत पुरुष शीघ्र हाथ जोड़ता है, मस्तक नवाता है कई बार किसी किसी जीव को ऐसा विचार होजाता है कि मैं अमुक पुरुष को नमस्कार या उसकी विनय क्रिया नहीं करूंगा किन्तु वह प्रभावशाली, उत्तमर्ण, गुणगरिष्ठ, उपकारी पुरुष को जब सन्मुख पाजाता है तो बिना चाहे भी उसको विनीत और नतमस्तक होना पड़ता है। मनोज्ञ या गुप्त अंगों के प्रकट होजाने की सम्भावना होजाने पर झट अपना हाथ उनको ढक लेता पेट में साजी मक्खी के चले जाने पर उदराशय उसको अपनी क्रिया करके फेंक देता है वमन होजाती है हाँ चिरैया, छपकली को कै नहीं होती है । छींक या जंभाई आने पर कई मनुष्य नाक, मुंह से हाथ लगा लेते हैं। अधिक प्यास लगने पर ओठों पर जीभ फेर ली जाती है। तीव्र भूख और प्यास में यह लोलुपी जीव अन्न, पान, पदार्थों को शीघ्र खींच लेता है। भगवान् के सम्मुख भक्तिवश प्राणी नृत्य करने लग जाता है । मुख पर मक्खी के बैठते ही उसके उड़ाने का प्रयत्न किया जाता है। गीले खेत में पड़े हुये बीज में जन्म ले गया जीव यहां वहां से अपने वनस्पतिकाय शरीर उपभोगी पदार्थों को खींच लेता है, सोने चांदी की खानों के पृथिवीकायिक जीव अपने शरीर उपयोगी पदार्थों या हजारोंकोस दूरवर्ती चांदी, सोने की घिस कर गिरगयी चूर का आकर्षण कर लेते हैं, सोता हुआ युवा पुरुष जाड़ा लगने पर निकट रक्खे हुये वस्त्र को खींच कर ओढ़ लेता है, भूखा बालक माता के स्तनों की ओर मुंह कर दद्ध को चूस कर खींच लेता है, माता प्रेमवश बच्चे को चपटा लेती है। जगत में कषायें चित्र विचित्र कार्यों को कर रही हैं। प्रकरण में यही कहना है कि प्रदोष आदिक उस जीव के ज्ञानावरण आदि का आस्रव करा देवेंगे, उक्त हेतु में कोई व्यभिचार दोष नहीं है। तत एव न विरुद्धं सर्वथा विपक्षावृत्तेरविरुद्धोपपत्तेः । विपक्षे बाधकप्रमाणाभावात्संदिग्धविपक्षव्यावृत्तिकोऽयं हेतुरिति चेन्न, साध्यामावे साधनाभावप्रतिपादनात् ।
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
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