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________________ श्लोक-वार्तिक अरूपित्वापवादोऽयं रूपिण. पुद्गला इति । रूपं मूर्तिरिह ज्ञ या न स्वभावोखिलार्थभाक् ॥१॥ रूपादिपरिणामस्य मूर्तित्वेनाभिधानतः । स्पर्शादिमत्त्व मेतेषामुपलक्ष्येत तत्वतः ॥२॥ "रूपिणः पुद्गलाः" यह जो सूत्र है सो पूर्वसूत्र में कहे जा चुके पुद्गल के अरूपीपन का अपवाद है यहां प्रकरण में रूप का अर्थ मूर्ति समझना चाहिये । सम्पूर्ण अर्थों में प्राप्त होरहा स्वभाव तो रूप का अर्थ नहीं है अर्थात्-रूप का अर्थ यदि स्वभाव या स्वरूप पकड़ लिया जाय तब तो सम्पूर्ण पदार्थ या सम्पूर्ण द्रव्य गुण, पर्यायें, रूपी वन बैठेंगीं । अन्य पाकर ग्रन्थों में रूप आदि परिणाम को मूर्तिपन करके कथन किया है वस्तुतत्त्व रूप से इन पुद्गलों को उपलक्षणों द्वारा स्पर्श आदि से सहितपना समझ लिया जाता है यानी रूपिणः कहने से रसवन्तः, गन्धवन्तः इत्यादि सव पौद्गलिक गुणों से सहितपना जान लिया जाय । संक्षिप्त सूत्र में अनेक गुणों का नाम कहां तक गिनाया जा सकता है? अथ पएणामपि द्रव्याणां नानाद्रव्यत्वमाहोस्विदेकैकद्रव्यत्वमुत केषांचिन्नानाद्रव्य त्वमित्याशंकायामिदमाह। ___ कोई शिष्य श्री उस्मास्वामी महाराज के प्रति शंका उठाता है कि छहों भी द्रव्यों को क्या प्रत्येक के अनेक द्रव्यपना है ? अथवा क्या छहों द्रव्य एक एक द्रव्य स्वरूप ही हैं ? किं वा कोई कोई ही नाना द्रव्य हैं ? इस प्रकार आशंका होने पर सूत्रकार इस अगले सूत्र को स्पष्ट कहे देते हैं आ आकाशादेकद्रव्याणि ॥६॥ प्राकाशपर्यन्त एक एक द्रव्य हैं अर्थात्-धर्मद्रव्य एक ही द्रव्य है और अधर्म द्रव्य भी एक ही है तथा आकाश द्रव्य एक ही है, शेष द्रव्य अनेक होंगे यह परिशेषन्याय से लब्ध होजाता है। अभिविधावाड्प्रयोगः । एकशब्दः संख्यावचनस्तत्संबंधाद् द्रव्यस्यैकवचनप्रसंग इति चेन्न, धर्माद्यपेक्षया बहुत्वसिद्धः। एकं च द्रव्यं च तदेकद्रव्यं एकद्रव्यं चैकद्रव्यं च एक द्रव्याणीति धर्मबषेचया बहुत्व न विरुध्यते । एकैकमस्तु लघुत्वात् प्रसिद्धत्वाद्र्व्यगतेरिति धेन या द्रव्यापेक्षयैकत्वस्यापनार्थत्वादेकद्रव्याणीति वचनस्य पर्यायार्थादेशाबहुत्वप्रतिपत्तेः ।
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
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