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पंचम-अध्याय
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भूत परिणाम है । पुद्गल परमाणु के सदृश ही कालाणुषों का प्राकार भी वरफी के समान समधन चतुरस्र है । पुद्गल परमाणु या कालाणु के अनुसार ही नाप को लिये हुये प्रखण्ड प्राकाश के प्रदेश को कल्पना करली जाय॥ .. दुनियां का कोई भी कार्य ऐसा नहीं है जोकि प्राधा समय या डेड़ समय या ढाई सपय में तयार होय, जो कोईभी छोटा बडा पूरा कार्य होगा वह पूर्ण एक समय या दो समय प्रादि पूरे समयों को घेर कर निष्पन्न होगा। इसी प्रकार कोई भो पौद्गलिक पदार्थ होय एक, दो, तीन प्रादि परमाणु से बनेगा डेड, ढाई साढ़े तीन आदि परमाणुपों से नहीं।
तथा कोई भी पूरा प्राधेय यदि कहीं ठहरेगा। तो पूरे एक दो ग्रादि प्रदेशों पर ही निवास करेगा। प्राधे, डंड़, ढाई प्रदेशों पर नहीं। तोन परमाणु याददो प्रदेशो पर ठहरेगे तो एक प्रदेश पर दो और दूसरे प्रदेश पर एक यों औठ जायगे डेड डेड़ प्रदेश पर नहों। यां प्रत्येक मुमुक्ष का शुद्ध द्रव्यों का ध्यान करते हुये शुद्धात्मा के निर्विकल्पक ध्यान का अम्यास करते रहना चाहिये।
इस प्रकार श्री परम पूज्य विद्यानन्दो प्राचार्य कृत श्री तत्वार्थ श्लोकवात्तिक महान् ग्रन्थ की प्रागरा मण्डलान्तर्गत चावली ग्राम निवासो श्री हेतसिंह तनून न्यायदिवाकर, तकरत्न, स्याद्वादवारिधि, सिद्धान्तमहोदधि आदि पदवी विभूषित पण्डित माणिकचन्द्र न्यायाचार्य कृत हिन्दो देशभाषा भय तत्वार्थ चिन्तामणि नामक टीका में पवित्रा अध्याय परिपूर्ण हुप्रा ।
ॐ नमः सिद्धेभ्यः सिद्धेभ्यः द्रव्यत्वाद्रव्यमूचुः कतिचिदथ गुणात्केचिदाहुः क्रियातो ब्रह्माद्वैतादजीवं निषिषिधुरपरे चिन्नटी नाटयन्तः । मीमांसांचक्रिरेऽर्थः स्फुटति यत इति स्फोट मन्ये लपन्तो जीयाच्छीग्रन्थकर्ता प्रतिविहिति परः पञ्चमाध्याय एषाम् ॥ श्रीमद्मास्वामिवचःपयोधिसन्तरण पोतमाचार्यः। जीयाद्विद्यानन्दस्तत्त्वार्थश्लोकवात्तिक रचयन् ॥
पंचमोध्यायः
समाप्तः