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पंचम अध्याय
है उन सब का प्रयोजन जैनों के अभीष्ट किये गये द्रव्य के लक्षण में दिये गये पर्यांयपद से ही सध जाता है।
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हां गुरण पद तो द्रव्य के लक्षण में दोनों के यहां उपात्त किया गया है, अतः वैशेषिकों को द्रव्य के तिस प्रकार लम्बे और दोषग्रस्त लक्षण का कथन नहीं करना चाहिये । हां स्याद्वादियों का किया गया सूत्रोक्त लक्षण समीचीन है, यों करने से सभी सिद्धान्त निर्दोष सिद्ध होजाते हैं ।
तदेवं जीवपुद्गलधर्माधर्माकाशभेदात्पंचविधमेव द्रव्यमिति वदतं प्रत्याह ।
अगले सूत्र का अवतरण है। कोई कह रहा है कि उपकार करने की अपेक्षा 'वर्तना परिणामक्रियाः परत्वापरत्वे च कालस्य' इस सूत्र द्वारा काल को भले ही कह दिया गया होय किन्तु जव तक काल को स्वतंत्र द्रव्य नहीं कहा जायगा तव तक ये उपकार तो व्यवहार काल के भी समझे जासकते हैं वर्तना को छोड़ कर परिणाम आदि को व्यवहारकाल का उपकार इष्ट भी किया गया है तव तो अभी तक 'अजीवकायाधर्माधर्माकाशपुद्गलाः' 'द्रव्यारिण, जीवश्च' इन सूत्रों करके कहे जा चुके पांच द्रव्यों के ही द्रव्यपन का व्यवसाय करना प्रसंग प्राप्त हुआ । तिस कारण इस प्रकार उक्त लक्षणसूत्र द्वारा जीव मुद्गल, धर्म अधर्म, और आकाश के भेद से पांच प्रकार के ही द्रव्य सिद्ध होते हैं काल तो वस्तुभूत द्रव्य नहीं हो सका ऐसा ही श्वेताम्बर वन्धु मानते हैं, इस प्रकार कह रहे वादी पण्डित के प्रति सूत्रकार महोदय अनुक्त द्रव्य की सूचना करने के लिये इस अगले सूत्र को प्रव्यक्त कहते हैं ।
कालश्च
उक्त पांच द्रव्यों के अतिरिक्त काल भी स्वतंत्र छठा द्रव्य है जब कि द्रव्य का अक्षुण्ण लक्षण वहां घटित हो रहा है। तदनुसार लोक प्रदेश परिमित प्रसंख्याता संख्यातकालायें सभी काल द्रव्य हैं, एक एक काल परमाणु अनेक गुण और पर्यायों को धारे हुये हैं ।
गुणपर्ययव द्रव्यमित्यभिसंबंधनीयम् ।
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गुणपर्ययवद्रव्य " गुणों और पर्यायों को धारने वाला द्रव्य होता है, इस पूर्व सूत्र के पूरे लक्षण लक्ष्य पदों का यहां विधेय दल की ओर सम्बन्ध करने लेने योग्य है, अतः समुच्चय अर्थ के वाचक च शब्दके अनुसार काल भी छठा गुरण, पर्यायों, वाला द्रव्य है यह श्रन्वितकर अर्थ होजाता है ।
कालश्चद्रव्यमित्याह प्रोक्तलक्षणयोगतः ।
तस्याद्रव्यत्वविज्ञाननिवृत्यर्थं समासतः ॥ १ ॥
सूत्रकार द्वारा द्रव्य के बहुत अच्छे कहे गये " गुणपर्ययवद्द्रव्यं" इस लक्षणवाक्य का सम्बन्ध
हो
" काल भी द्रव्य है " इस वात को सूत्रकार " कालश्च " सूत्र द्वारा संक्षेप से कह रहे हैं ।
जो कि उस काल के द्रव्य रहित पन की परिच्छित्ति का निवारण करने के लिये है । अर्थात्- -काल