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________________ पचम- अध्याय ૪ पाती है, जिस प्रकार सिनेमा के पर्दा पर जाने अने वाले पदार्थों का प्रतिविम्ब नहीं है केवल विभिन्न प्रकार के चित्रों का प्रतिविम्ब पड़ जाने से दृष्टाओं को वैसी चलते फिरते पदार्थों की प्रतिपत्ति होजाती है, वस्तुतः पदार्थ निष्क्रिय हैं। तथा कोई पडित सभी द्रव्यों को समवायी कारण इष्ट नहीं करते हैं। कूटस्थ द्रव्य किसी का समवायीकारण नहीं होसकता है। इस प्रकार दूसरे पण्डितों की प्रयुक्त बचन स्वरूप चेष्टा का निराकरण करने के लिये हम वैशेषिकों करके सभी द्रव्य क्रियावान् हैं और समवायिकारण है यों "क्रियावत्समवायिकारणं द्रव्यं" यह द्रव्य का सुन्दर लक्षण कह दिया जाता है, पृथिवी, जल, तेज, वायु और मन इन द्रव्यों में क्रिया सहितपना सिद्ध है. तथा समवायिकारणपना तो सम्पूर्ण द्रव्यों के प्रतीत होरहा है, जैसे कि सभी द्रव्यों के गुण सहितपन की प्रतीति हो रही है । अर्थात- पृथिवी में चौदह, जल में चौदह, तेज में ग्यारह, वायु में नव, आकाश में छ:, काल में पांच, दिशा में पांच श्रात्मा में चौदह, ईश्वर में आठ और मन आठ गुण माने जाते है 'वाथो वैकादशतेजोगुणा जलक्षितिप्राणभृतां चतुर्दश । दिक्कालयोः पंच षडेव चाम्बरे महेश्वरेष्टौ मनसस्तथैव च' इसी प्रकार परमाणु स्वरूप नित्यद्रव्य और कार्यस्वरूप ग्रनित्यद्रव्य पृथिवी, जल, तेज, वायुत्रों को स्वकीय जन्य गुणों का या स्वजन्य अवयवी द्रव्यों का समवायीकारणपना प्राप्त है श्राकाश काल, दिग्. जीवात्मा, परमात्मा, इन चार व्यापक नित्य द्रव्यों को अपने जन्य गुणों का समवायि कारणपना स्वभाव सिद्ध है, नित्य द्रव्य माने गये मन को स्वकीय संयोगादि अनेक जन्य गुणों और क्रियाओं का समवायिकारणपना निर्णीत है, यों 'क्रियावद्रणवत्समवायिकारणं द्रव्यं' यह द्रव्य का लक्षरण उचित प्रतीत होता है । ग्रन्थकार कहते हैं कि यों दूसरे विद्वान् वैशेषिकों का यह बचन भी समीचीन नहीं है, क्योंकि यदि इसी प्रकार दूसरों की विप्रतिपत्ति का निराकरण करने के लिये द्रव्य के लक्षण में इतर व्याव पदों का डालना अभिप्रेत होय तब तो 'द्रव्यवद्विशेषवत्सामान्यवच्चद्रव्यं' यों द्रव्य के लक्षण के निरूपण करने का प्रसंग आवेगा कारण कि कितने वादी द्रव्य को स्वकीय कार्य द्रव्य से सहित स्वीकार नहीं करते हैं, बौद्धों को ही लीजिये वे स्वलक्षण परमाणुओं से किसी द्वद्यणुकादि श्रवयवी स्कन्ध का वनना इष्ट नहीं करते हैं हाँ पूर्वक्षणवर्ती परमाणु स्वलक्षण से भले ही उत्तर क्षणवर्ती स्वलक्षण परमाणु द्रव्य उपज जाय किन्तु तब तक पहिले क्षणिक कारण का विनाश होजाता है, अतः कार्य द्रव्य वाला कारणद्रव्य कथमपि नहीं हो सका । यों इस वौद्ध सिद्धान्त का निराकरण करने के लिये वैशेषिकों को द्रव्य का लक्षण में 'द्रव्यवत्' विशेषण देना उचित पड़ जायगा तथा कोई वादी द्रव्य में विशेष को स्वीकार नहीं करते हैं, ब्रह्माद्वैतवादी पण्डितों ने परमब्रह्म में विशेष स्वीकार नहीं किया है अन्यथा द्वत का प्रसंग प्रजायगा श्रतः वैशेषिकों को द्रव्य के लक्षण में 'विशेषवत् कहना भी इष्ट पड़ा तथैव कोई पण्डित द्रव्य में सामा
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
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