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________________ पंचम-अध्याय प्रथम से ही अवयव सहितपना मानना पड़ेगा जैसे कि पंचांगुल के उपर दूसरे पंचांगुल को धर देने पर एक एक अंगुलीस्वरूप एकदेश से सम्बन्ध मानने पर पहिले ही दूसरे पं वांगुल में अगुलियां स्वरूप अवयव मानने पड़ते हैं, और उन अवयवो का भी पुन: अपने अवयत्री के साथ एकदेश से संसर्ग मानने पर पुन: अवयवों की कल्पना करनी पड़ेगी, यो पहिले से ही उसके कतिपय देश पुनः मानने पड़ेगे, इस प्रकार अवयवों की धारा बढ़ते बढ़ते अनवस्था दोष आवेगा क्योंकि उस एक देश का भी अन्य एक एक देशों के साध सम्बन्ध चला जायेगा। यदि कार्य कारणों के साथ उस मध्यवर्ती सन्तान का परिपूर्ण रूप करके सम्बन्ध माना जायेगा तब तो फिर सन्तान को केवल एकक्षणिक स्वलक्षण स्वरूप होजाने का प्रसंग पाजावेगा जैसे कि एक परमाणु का दूसरे परामाणु के साथ सर्वांग सम्बन्ध होजाने पर परमाणुमात्र ही प्रचय रह जाता है, अथवा एक कटोरी भर पानी का अन्य कटोरी भर बुरे के साथ परिपूर्ण संसर्ग होजाने पर कटोरी बराबर परिमाण का धारी ही पदार्थ बन जाता है। एक बात यह भी है, कि कार्य कारण क्षणों का परस्पर सर्वागीण सम्बन्ध मान लेने पर बेचारे कार्य कारण भाव का ही प्रभाव होजावेगा क्योंकि सर्वथा एक होरहे पिण्ड में उस कार्य कारण भाव के होने का विरोध है, अतः उक्त चार दोषों के भय से हम बौद्ध एक-देशेन या सर्वात्मना तो सम्बन्ध मान नहीं सकते हैं, और कार्यकारण भाव की धारा निर्णीत करना ही है, ऐसी दशा में कोई हम बौद्धों से प्रश्न करे कि तब तो फिर संतान बनानेका उपाय क्या है ? इसका उत्तर यही होगा कि उन कार्य कारण क्षणों का सम्बन्ध है ही, यह कह दिया जाता है। प्राचार्य महाराज कहते हैं, कि जिस प्रकार बौद्ध अपने कार्य कारणक्षरणों के सन्तान की धोंस , दिखाते हुवे रक्षा कर लेते हैं, उसी प्रकार हम जैन भी कह देंगे कि तिसी प्रकार परमाणुषों का भी जो युगपत् परस्पर में संसर्ग होकर एकत्व परिणति का हेतु जो बंध होरहा है, वह न तो एक देश करके है, क्योंकि एक परमाणु का दूसरे परमाणु के साथ एक देशेन संसर्ग मानने पर परमाणु के पहिले से ही कई एक देश मानने पड़ेंगे उन एक देशोंका भी परस्पर या परमाणु के साथ एक एक देश करके सम्बन्ध मानते मानते अनवस्था दोष भी पाजावेगा। यो परमाणु के अवयव सहितपन दोष और अनवस्था . दोष का प्रसंग आया । तथा परमाणु का दूसरे परमाणु के साथ सर्वात्मना बंध जाना मानने पर पिंड को केवल एक परमाणु बराबर होजाने का प्रसंग आता है, जो कि क्षम्य नहीं है, अन्यथा जगत् में कोई भी लम्बा चौड़ा पदार्थ दृष्टि-गोचर नहीं होसकेगा, तब तो फिर परमाणु के साथ दूसरे परमाणु का किस प्रकार से बंध माना जाय?1. .. ____ इसका उत्तर हम जैन भी धोंस दिखाते हुये यही कहेंगे कि परमाणुओं का भी पिण्ड ही बंध रहा है, क्योंकि विशेष स्निग्धपन और रूक्षपन के अधीन होकर वह पिण्ड, स्कन्ध बन गया है, वस्तु परिणतिके अनुसार तिसी प्रकार बंध होरहा देखा जाता है,जैसे कि सतुआ पानी, दही, बूरा, क्षीर,नीर चांदी, टांका आदि का पिण्ड बंध रहा देखा जाता है, मट्टा में कदाचित्, क्वचित, ईटों का ढिम्मा बंध -
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
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