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________________ पंचम अध्याय ફર विभाग है । बात यह है कि अवयवों के विभाग से भले ही प्रवयवी का विभाग होजाय किन्तु अवयवों ( स्कन्ध ) के विभाग ( भेद ) से अवयवों ( परमाणुत्रों ) का विभाग कथमपि नहीं हो सकता है, हां अवयवों के परस्पर में होरहे अन्यतर कर्म-जन्य अथवा उभय कर्म-जन्य विभागों की प्रतीति होरही है जो कि प्रतीति किसी के द्वारा वाधी नहीं जाती है । अर्थात् - अवयवों के विभाग तो क्रियाओं से ही होते माने गये हैं, फिर धाप वैशेषिकों ने इस सू की दूसरी वार्तिक द्वारा द्वधरणुक, त्र्यणुक, प्रादि स्कन्धों के भेद ( विभाग ) से परमाणुत्रों के विभाग की ही उत्पत्ति होना किस प्रकार स्वीकार कर लिया है ? बताश्रो यदि श्राप वैशेषिक स्कन्ध विदारण से परमाणु प्रोंका विभाग होजाना इष्ट कर लेंगे तो दूसरे पण्डितों करके यो अवश्य कहा जा सकता है कि संघात से परमाणुत्रों का संयोग ही उपजता है स्कन्ध या अवयवी नहीं । इस प्राक्षेप का आप कोई समुचित उत्तर नहीं दे सके, तीसरी वार्तिक द्वारा किया गया आक्षेप वैशेषिकों के ऊपर तदवस्थ है । तस्यावयवभेदादाकाशाद्विभागों विभग्गज एवेति चेत् तर्हि परमाणुमवातादाकाशदेशादिना संयोगोपि संयोगजस्तु । श्रथ परमाणु संघातादुत्पन्नेनावयविना व्योमादेः संयोगः संयोगजो न पुन: प. माणुभिस्तस्य संयोग इति मत तर्हि स्वधभेदादुत्पन्नस्य परम / गौरकर्देशादिभ्यो विभागो न विभागजः किं तु स्वन्वभेद इति सर्वं समानं पश्यामः । यदि वैशेषिक यों कहैं कि उस स्कन्ध के अवयवों का भेद होजाने से हुआ श्राकाश के साथ विभाग तो विभागजन्य है, श्रतः स्कन्ध के विदारण से परमाणुयें नहीं उपजी हैं, किन्तु अवयव भेद स्वरूप विभाग से उस श्रवयवी स्कन्ध का उन पूववर्त्ती प्राकश प्रदेशों के साथ विभाग उपजे जाती है यह हमारे यहां विभागज विभाग माना गया है । कहने पर तो आचार्य कहते हैं कि तब तो परमाणुनों के संघात से हुआ आकाश देश, भूमि प्रदेश आदि के साथ संयोग भी संयोगज ही होजाग्रो अर्थात्-वैशेषिकों ने जैसे स्कन्ध के अवयवों का विदारण होजाने से प्रणु की उत्पत्ति नहीं मानकर केवल स्कन्धावयवों का श्राकाश के साथ हुआ विभागज विभाग ही इष्ट कर लिया है । उसी प्रकार हम भी विक्ष ेप डाल देंगे कि परमाणुओं के संयोग - विशेष स्वरूप संघात से कोई श्रवयवी स्कन्ध उत्पन्न नहीं होता है केवल पूर्व प्रदेशों से न्यारे श्राकाश प्रदेशों के साथ उन प्रणुओंों का संयोग होगया है जो कि संयोगज संयोग है I इस पर यदि वैशेषिकों का यह मन्तव्य प्रकाशित होय कि परमाणुओं के संघात से अवयवी उत्पन्न होता है और उस उपजे हुये अवयवी के साथ हुआ श्राकाश, भूमि, कार्दि का संयोग ही संयोंगज होता है, किन्तु फिर परमाणुओं के साथ उस प्रकाश आदि का संयोग नहीं होपाता है । जब कि परमाणुओं के श्रवयवी बन चुके तो परमाणुम्रों के साथ आकाश का संयोग होजाना अलीक है । श्रव श्राचार्य कहते हैं कि तब तो हम जैन भी अपना प्रभोष्ट यों प्रकाशित करें देते हैं, कि स्कन्ध का ४
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
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