SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचम व्याय ३१७ तत्वों को मानते हैं, ईश्वर वादी कोई सांख्य के एक देशी पण्डित ईश्वर को भी तीसरा तत्व मान बैठे हैं, इनके यहां श्रात्मा भी परमाणु स्वरूप नहीं है. तथा सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण, की साम्य अवस्था स्वरूप प्रकृति भी परमाणु रूप नहीं है, अतः प्राकृतिक पदार्थों को एकान्ततः स्कन्ध स्वरूप ही इन्हें मानना पड़ेगा, अतः इस सूत्र द्वारा सांख्यों के स्कन्ध एकान्त का भी प्रत्याख्यान कर दिया जा चुका है । न ह्यणव एवेत्येकांत: श्र ेयान स्कंधानामक्षबुद्धौ प्रतिभासनात् । तत्र तत्प्रतिभासम्य भ्रांत त्वे वहिरंतश्च परमाखूनामप्रतिभासन' न्न प्रत्यक्षमभ्रांतं स्यात् । स्वसंवेदनेपि संवित्परमाणोरप्रतिभासनात् । तथोपगमे सर्वशून्यतापत्तिरनुमानस्यापि परमाणुग्राहिण सद्भावात् भ्रांतात्प्रत्यक्षतः कस्यचिन्न लिंगस्याव्यवस्थितेः कुतः परमाण्वेकांतवादः पारमार्थिकः स्यात् १ | अन्तरंग या वहिरंग सभी पदार्थ अणु स्वरूप ही हैं, यह एकान्त करना श्रेष्ठ नहीं है, क्योंकि प्रत्यक्ष बुद्धि में स्कन्धों का प्रतिभास होता है, घट पट पुस्तक, पर्वत, आदि पिण्डों का बालकों को भी प्रत्यक्ष अवलोकन होता है. यदि उन अवयवी पदार्थों में होरहे उस स्कन्ध के प्रतिभास का भ्रान्त होना कहा जायेगा तब तो वहिरंग और अन्तरंग परमाणुत्रों का प्रतिभास नहीं होने के कारण कोई भी प्रत्यक्ष प्रभ्रान्त नहीं होसकेगा। भावार्थ बौद्धों के यहां अन्तरंग आत्म-तत्व माने गये क्षणिक विज्ञान स्वरूप परमाणुत्रों का तो वैसे ही प्रतीन्द्रिय सूक्ष्म होने से प्रत्यक्ष नहीं होसकता है, प्रत एव वहिरंग स्वलक्षण परमाणुत्रों का भी प्रत्यक्ष नहीं हापाता है, ऐसी दशा में किसी भी परमाणु का प्रत्यक्ष नहीं हो सका, यदि किसी ने बलात्कार से परमाणु वधूटी के प्रतीन्द्रिय घू घट में छिपे हुये मुख का दर्शन कर भी लिया तो प्रत्यक्ष भ्रान्त ही होगा, समीचीन प्रमाण स्वरूप नहीं । तथा स्कन्धों के प्रत्यक्षों को तो बौद्ध प्रपरमार्थभूत होने के कारण भ्रांत कह ही रहे हैं, ऐसी दशा में जगत् के प्रारिणोंका कोई भी प्रत्यक्ष भ्रांति-रहित यानी प्रामाणिक नहीं होसका, सभी प्रत्यक्ष भ्रान्त होगये अब प्रत्यक्ष प्रमाण की प्रवृत्ति के विना, टोंटे लगडे पुरुष के समान बौद्ध किसी भी अर्थ - सिद्धि पर नहीं पहुँच सकेंगे क्योंकि सभी के यहां तत्व - व्यवथायें प्रमाणमूलक मानी गयी हैं बौद्धो ने प्रत्यक्ष और अनुमान ये दो ही प्रमाण माने हैं, अनुमान का वीज प्रत्यक्ष है, यदि प्रत्यक्ष को भ्रान्त मान लिया जायगा तो बौद्धों के भी तत्व बालू की भींत पर चित्रित होरहे कल्पित ठहर जायेंगे बौद्धों के यहां माने गये स्वसम्वेदन प्रत्यक्ष में भी विज्ञान परमाणुओंों का प्रतिभास नहीं होने पाता है, ऐसी दशा में बौद्धों के प्रगीकृत इन्द्रिय प्रत्यक्ष, मानस प्रत्यक्ष, स्वसम्वेदन प्रत्यक्ष, और योगि प्रत्यक्ष, इन चारों प्रत्यक्षों का भ्रान्तपना होचुका । यदि तिस प्रकार प्रत्यक्षों का भ्रान्तपना स्वीकार कर लेंगे तब तो बौद्धों के यहां सबसे शून्य होजाने का प्रसंग आजावेगा अनुमान प्रमाण भी किसी तत्व को नही साध सकता है ।
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy