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लोक-वातिक
ज्ञापकपन की योग्यता होने से ही रूप आदि सामान्य क अपने द्वारा देखने योग्य सामान्य रूप से अन्य अर्थों के साथ भी योग्यता नामक सम्बन्ध की सिद्धि होरही मान ली जानो तथा हस्त पाद आदि क्रियाओं की भी अपने अभिनेय अर्थ के साथ सामान्य रूप से प्रतिपादनार्थ योग्यता नामक सम्बन्ध बन रहा भी मान लिया जाय किसी पुरुष ने अंगुलो प्रादि के रूप या अवयव-संचालन का किसी विशेष अर्थ के साथ स्वयं संकेत ग्रहण नहीं किया है, ऐसी दशा में किसी स्वामी या नतक ने अंगुली आदि के रूप का दिखलाना किया उसको देख कर उस पुरुष द्वारा ' यह चिन्ह किस अर्थ को कह रहा है ?" यों विशिष्ट अर्थ में संशय करके प्रश्न उठाना देखा जाता है, अतः सिद्ध होजाता है, कि उस पुरुष को अंगुली आदि के रूप के द्वारा प्रतिपाद्य अर्थ की सामान्य रूप से प्रतिपत्ति प्रथम से ही थी तभी तो विशेष अशों में संशय उठाया गया है। शब्दसामान्य और गन्ध सामान्य या अवयव क्रिया सामान्य में कोई विशेषता नही है ।
___ अर्थात् तुम्हारे परामर्श अनुसार सभी पदार्थ कुछ न कुछ अर्थों को कह ही रहे हैं, अलङ्कार की रीति से भूमि भी यह शिक्षा देती है कि मेरे समान सबका सहनशील होना चाहिये चाहे खोदले भले ही कूड़ा करकट डाल , दे, हमें क्षमा है। खम्भ सिखा रहा है, कि अपने ऊपर आये हुये बोझ को सहर्ष झेल लेना चाहिये । काटने वाले का भी गंध दे रहा चन्दन वृक्ष सिखाता है, कि मित्र, शत्रु, किसी के भी साथ राग द्वेष मत करो वात्सल्य भावों को बढ़ायो। प्राकाश समझाता है, कि मेरे समान सम्पूर्ण जीव अलिप्त होजावें यही द्रव्यों, का स्वाभाविक स्वरूप है। अग्नि से पापों के ध्वंस करने की शिक्षा लो। घडी यन्त्र कह रहा है कि व्यर्थ में समय को मत खोप्रो. मेरे समान सदा शभ काय करने में लगे रहो । इत्यादि प्रकारों से कुत्ता. हंस, हाथो, वेश्या, गधा, कौपा, आदि से भी स्वामिभक्ति, स्वल्पनिन्दा, नीरक्षोरविवेक समान न्याय करना, गमन, लोक चातुय, संतोष पूवक लोलुपताके बिना उदर भर लेना, चेष्टा, आदि कृत्य सीखे जा सकते हैं, ऐसा अवस्था में शब्दस्फोट के समान तुम गंध स्फोट आदि का प्रत्याख्यान नहीं कर सकते हो।
तदेवं शब्दस्यवार्थे गंवादोनां प्रातपत्ति कुर्वतामाक्षे समाधानानां समानरमादतः प्रकाशरूपे बुद्धयात्मनि स्फाटे शब्दादन्यस्मिनुपगम्यमान गवादिभ्यः पर फाटार्थप्रतिपत्तिहेतुर्घाणादीन्द्रियमतिपूर्वश्रु तज्ञानरूपोभ्य (गाव्याऽन्यथा शब्दस्फोटाव्यवस्थितप्रसगात् स च । नैकस्वभावो नानास्वभावतया सदावभासनात् ।
तिस कारण इस प्रकार शब्द के द्वारा जैसे वाच्यार्थ में प्रतिपत्ति करली जातो है अतः बुद्धि स्वरूप शब्द स्फोट मान लिया जाता है उसी प्रकार गंध, हाथ, पांव, अंगुली प्रादि से भी अपने अपने ज्ञय अर्थों की प्रतिपत्ति होजाने को करने वाले विद्वानों के यहां आक्षेप और समाधान करना समान रूप से लागू होता है, अतः गन्ध स्फोट, अगहारस्फोट, भूमि स्फोट, आदि भी मान लिये जानो, अन्तरंग में प्रकाश स्वरूप होरहे. बुद्धि प्रात्मक स्फोट को वैयाकरणों के यहाँ यदि शब्द से निराला स्वीकार