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पंचम-अध्याय
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वंताय अगेज्जगेहि अन्तरिया । आहारतेजभासामण-कम्मइया धुवक्खंधा ॥ अणु आदि पुद्गल के तेईस भेदों को दिखलाते हुये "सिद्धाणतिमभागो पडिभागो गेज्झगाण जेटुट्ठ,, इस प्रतिभाग अनुसार भाषावर्गणाओं का बनना समझाया है ।
___ कण्ठ तालु आदि के निमित्त अनुसार उन भाषावर्गणाओं की समान रूप से किसी भी. अकार, चकार आदि शब्द बन जाने की योग्यता है, जैसे कि मेघ जल उन उन वृक्षों में वैसा वैसा रस होकर परिणम जाता है । अतः 'सदृशपरिणामस्तिर्यक् सामान्यं,, समान परिणति वालों में सामान्य ( जाति ) रहता है, 'सामान्ये एकत्वं,, जाति की अपेक्षा एक वचन कह देने में कोई क्षति नहीं पड़ती है, अतः भाषावर्गणा स्वरूप अनेक अशुद्धपुद्गल द्रव्यों को उपचार से कह दिया गया है, अनेक तन्तुओं से जैसे एक अवयवी थान बन जाता है । उसी प्रकार अनन्त भाषावर्गणाओं से एक एक क, ख, गौः, आदि शब्द बन जाते हैं, यह एकत्व के उपचार करने का प्रयोजन भी है ।
वर्णक्रमो वाक्यमित्यपरः । सोऽपि वर्णेभ्यो भिन्नमेकर भावं क्रमं यदि वयात्तदा प्रतीतिविरोधः तम्य श्रोत्रबुद्धावप्रतिभासनात् । सम्बन्धानुपपत्तश्चानवयववाक्यवत् । वर्णेभ्योनर्थातरत्वे तु क्रमस्य वर्णा एव न कश्चित्क्रमः स्यात् ।
अब व्याकरण का एक देशी दूसरा विद्वान् यों कह रहा है । कि वर्णों का क्रम ही वाक्य है अर्थात्- पहिले एक वर्ण सुनाई दिया पुनः दूसरा वर्ण, पश्चात् तीसरा वर्ण सुनने में आया इत्यादि प्रकार करके वर्णोका क्रम होजाना ही वाक्य है । आचार्य कहते हैं कि वह वर्ण क्रम को वाक्य कह रहा विद्वान् भी क्रम को यदि वर्गों से भिन्न ही या एक स्वभाव वाला ही कहेगा तब तो प्रतीतियों से विरोध आता है, क्योंकि उन वर्गों से सर्वथा भिन्न और एक स्वभाव वाले मानेजारहे क्रम का कर्णेन्द्रियजन्य ज्ञान में प्रतिभास नहीं होता है । दूसरी बात यह है, कि सर्वथा भिन्न होरहे क्रम का और उन वर्गों का सम्बन्ध भी ता नहीं बन सकता है। जैसे कि अनवयव एक शब्द को वाक्य कहने वाले पण्डित के यहाँ निरंश वाक्य का अपने भिन्न पड़े हुये अवयवों के साथ सन्बन्ध नहीं बन । पाता है, इस बात को ग्रन्थकार अभी पूर्व प्रकरण में सिद्ध कर चुके हैं।
. हाँ वर्णों से क्रम का अभेद मानने पर तो सन्बन्ध नहीं बन सकने का दोष टल गया किन्तु सर्वथा अभेद पक्ष लेने पर अनेक वर्ण ही ठहरते हैं, कोई क्रम नहीं ठहर पायेगा ऐसी दशा में क्रम । को वाक्य कहे चले जाना उचित नहीं जंचता है।
____ मन्यमेतदेवं यावतो यादृशा ये च पदार्थप्रतिपादन व विज्ञातमा र्यास्ते तथैव बोधका इति वचनात ततोन्यस्य वाक्यम्य निराकरणादितीतरः। सोपि यदि वर्णानां क्रम प्रत्याचक्षीत तदाग्निष्टोमेन यजेत स्वर्गकाम इत्याकार दयो ये यावंतश्च वर्णाः स्वेष्टवाक्यार्थप्रतिपादने विज्ञातसामर्थ्यास्ते तावंत एव वेत्युद्गमेनापि समुच्चार्यमाणास्तथा स्युर्विशेषाभावात् ।'