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रवादी पण्डितों के ऊपर ये उपर्युक्त उलाहने आते हैं. भेदैकान्त-वादी जैसे वाक्य और श्रवयवों के अथवा उपकृत या उपकारों के अभेद होने को बखान रहे अभेद-वादीको उक्त उलाहना दे देता है तथा प्रभेदेकान्तवादी सांख्य पण्डित जैसे वाक्य और अवयवों या उपकृत और उपकारों के सर्वथा भेद को वखान रहे भेदैकान्तवादी के ऊपर उक्त उपालम्भ उठादेता है, उसी प्रकार स्याद्वादी विद्वान दोनों भेदवादी या प्रभेदवादी पण्डितों के ऊपर दोनों उपालम्भ धर देते हैं। हाँ स्याद्वादियों के ऊपर कोई उलाहना नहीं आता है क्योंकि स्याद्वादियों के यहाँ प्रतोतियों का अतिक्रमण नहीं कर उन वाक्य या उसके अवयवों में कथचित् अभेद होना स्वीकार किया गया है । घट, पट, वाक्य, गृह, आदि अर्थों की एक और अनेक प्रकारों के साथ तदात्मकपने करके प्रतीति होरही है, सर्वथा एक मौर सर्वथा अनेक से निराली तीसरी ही जातिका एक-अनेक प्रात्मकपना व्यवस्थित होरहा है, अतः कथंचित् भेद अभेद को मानने वाले अनेकान्त-वादियों के यहाँ कोई उलाहना नहीं आता है, स्याद्वादी ही प्रत्युत एकान्तवादियों के ऊपर अनेक उलाहने लाद देते हैं ।
न हि वाक्यश्रवणानंतर मनेकाकारप्रतीतिः सर्वदा सर्वत्र सद्भावप्रसंगात् । नापि वर्णपदमात्रहेतुका तदाकारत्वप्रसंगा द्वर्ण प्रतीतिवत् । ततो वाक्याकारपरिणत शब्द द्रव्य हेतु कवाक्यप्रतीतिच्च तथा परिणतशब्दद्रव्यमेकानेकाकारं परमार्थतः सिद्धं वाधकाभावात् ।
चम-:
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"नमः श्री वर्द्धमानाय. देवदत्तो गच्छति, देवदत्त गामभ्याज शुक्लां दण्डेन,, इत्यादि वाक्यों को सुनने के पश्चात् अनेक प्रकारों की ही प्रतीति नहीं होती है ? यदि ऐसा होता तो सभी कालों में और सभी देशों में अनेक आकार वाली प्रतीति होने के ही सद्भाव का प्रसंग प्रजावेगा प्रर्थात्वाक्य या श्लोक ही क्या बड़े बड़े प्रकरणों' व्याख्यानों से पीछे एक प्रखण्ड शाब्दवोध का होना अनुभूत होरहा है, तभी तो बड़े बड़े व्याख्यानो या ग्रन्थों का सार एक वाक्य में सामान्य रूप से कह दिया जा रहा है । इतने बड़े महान् तत्वार्थ सूत्र ग्रन्थ में जीव आदि सात तत्वों का अधिगम कराते हुये मोक्षमार्ग का प्रदर्शन किया गया है । देखिये जैसे एक महा काव्य में अनेक सर्गों का एकीकरण है । एक सर्ग में कतिपय प्रकरणों का अन्वित प्रभिधान है एक प्रकरण में कतिपय श्लोकों का समवाय किया गया अर्थ परस्पर जुड़ रहा है, एक श्लोक में कई वाक्य गुथ रहे हैं, एक वाक्य में कई पद और एक पद में कई वर्ण समुदित होरहे हैं। अथवा जैसे कई सिपाहियों के उपर एक जमादार और कई जमादारों के ऊपर एक थानेदार तथा कई थानेदारों को स्वाधिकार वृत्ति कर रहा एक सुपरिटेन्डेन्ट है, एवं इनके ऊपर भी अधिकारी-वर्ग इसी क्रम से नियत है, इसो प्रकार वाक्यों के सुने जाने के पश्चात् एक आकार वाली भी प्रतीति होजाती है, बड़े से बड़े ग्रन्थों की संक्षेप से एक वाक्यता कर ली जाती है। ऋद्धिधारी मुनि श्रन्तमुहूर्त में द्वादशाङ्गका पाठ कर लेते हैं, द्वादशाङ्गके प्रमेय अर्थ का तो उससे भी अल्पकाल में अध्यवसाय कर लेते हैं । परीक्षार्थी छात्र अपने स्वभ्यस्त
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