________________
१९४
श्लोक-वार्तिक
अथवा कोई भी पर की अपेक्षा नहीं रखेगा। यदि आप जैन अब ऐसी विपन्न दशा में यों हैं कि काल का परिणाम होता ही नहीं हैं, तब तो हम आक्षेप-कर्ता कहेंगे कि सम्पूर्ण अर्थोके परिणाम का निमित्त कारणपना यह हेतु अनुकूल तर्क वाला नहीं ठहरेगा क्योंकि उस काल के परिणाम करके व्यभिचार होजायगा सम्पूर्ण अर्थों में काल भी आगया किन्तु काल का परिणाम होना ही पाप जैन नहीं मानते हैं। ऐसी दशा में सम्पूर्ण अर्थों के परिणाम करा देने में काल निमित्त नहीं होसका । एक बात यह भी
परिणामी मानने वाले जैनों के यहाँ काल का परिणाम नहीं मानने पर अपसिद्धान्त दोष आजाता है तिस कारण सिद्ध होता है, कि परिणाम होजाना काल का अनुमान कराने वाला नहीं है । जो कि आप जैनों ने पहिले कहा था, इस प्रकार कोई प्रतिवादी कह रहा है ।
सोपि न विपश्चित्, कालस्य सकलपरिणामनिमित्तत्वेन स्वपरिणामनिमित्त सिद्धेः सकलावगाहहेतुत्वेनाकाशस्य स्वावगाहहेतुवत् सर्वविदः सकलार्थमाक्षात्कारिन्वेन म्बात्म Iक्षात्कारित्ववद्वान्यथा तदनुपपत्तेः । न चैवं पुद्गलादयः सकलपरिणामहेतवः, स्वपरिणाम हेतुत्वेपि सकलपरिणामहेतुत्वाभावात् प्रतिनियतस्वपरिणामहेतुत्वात् ..
प्राचार्य कहते हैं कि वह भी आक्षेप कर्ता विचारशालो पण्डित नहीं है जब कि काल को सम्पूर्ण पदार्थों का निमित्तपना निर्णीत होचुका है, इस व्यवस्था करके काल को स्वकीय परिणामो का भी निमित्तपना सिद्ध है । काल की परिणति में अन्तरंग कारण भी काल है, और वहिरग कारण भी काल है अपनी पारणति में स्वयं निमित्त बनजाना कोई प्रसिद्ध नहीं है। यों समझिये जैसे कि आकाश को सम्पूर्ण पदार्थों के अवगाह का हेतुपन करके अपने भी अवगाह का हेतुपना सिद्ध है अथवा सर्वज्ञ को सम्पूर्ण अर्थों का प्रत्यक्षदर्शीपना होने से स्वकीय प्रात्मा का भी प्रत्यक्ष दर्शनपना सिद्ध है। अन्यथा वह स्वभाव बन नहीं सकता है । अर्थात्-प्रकाश यदि अपने को अवगाह नहीं देगा तो सकल अर्थों के अवगाह का हेतु नहीं होसकता है जो सवज्ञ स्वात्मा को ही नहीं जानता है, वह अन्य सम्पूण पदार्थों को मी नहीं जान सकता है, स्वयं अनुदार होरहा पुरुष दूसरे को उदार नहीं बना सकता है। जिस प्रकार काल अपनेसे सहित अन्य सम्पूर्ण पदार्थोंके परिणामका हेतु है, इस प्रकार पुद्गल आदिक द्रव्य तो सर्व द्रव्यों के परिणाम करानेके हेतु नहीं होसकते हैं क्योंकि अपनी अपनी परिणति का अन्तरंग हेत होते हये भी उनमें सम्पूर्ण द्रव्यों की परिणति के हेतुपन का अभाव है, जव कि सम्पूर्ण पदार्थों में स्वकीय स्वकीय परिणति का अन्तरं हेतुपना प्रतिनियत होरहा है, हां सूर्य के स्वप्रकाशकपनके समान काल द्रव्य में स्व-परनिमित्तपना स्वभाव व्यवस्थित है " स्वभावोऽतर्कगोचरः । "
ये त्वाः, नान्योन्यं परिणामयति भावान् नासौ स्वयं च परिण मते विविधपरिणामभाजां निमित्तमात्रं भवति काल इति। तेपि न कालस्यापरिणामित्वं प्रतिपन्नाः, सर्वस्य वस्तनः परिणामित्वात् । न च स्वय परिण मते इत्यनेन पुद्गलादिवत् महत्वा देपरिणामप्रतिषेधात् । न चासौ मावानन्योन्यं परिण मयतीत्यनेनापि तेषां स्वयं परिग ममानानां कालस्य प्रधानकरीत्वप्रतिषेधात । तस्यापि परिणामहेतुन्वं निमित्तम भाति काल इति वचन त । ततः सर्को वस्तुपरिणामो निमित्तद्रव्यहेतुक एवान्यथा तदनुपपत्तेरिति प्रतिपत्तव्यः। ..