SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्लोक-वार्तिक स्वरूप नहीं बढ़ गया है किन्तु जीव द्वारा आहार किये गये पृथिवी आदि के रसों अनुसार अकुर बढ़ पाया है, अन्य भी अन्तरंग वहिरंग कारण अपेक्षणीय हैं । ततो न वृद्धभावों कुरादेः । यदप्युक्तं, यो यत्परिणामश्च ततो न वृद्धिमान् दृष्टो यथा तीर परिणामो दध्यादिर्न क्षीरादिति । तत्र हेतुः कालात्ययापदिष्टो धर्मिदृष्टांत ग्राहकप्रमाणवाधितत्वात् धर्मी तावद्वीजपरिणामोंकुरादिस्ततो वृद्धिमानव प्रतिभासमानः कथं चाऽ वृद्धिमाननुमातु शक्यः । दृष्टांतश्च शीतक्षीरस्य तप्यमानोन्यो न चीरपरिमो धर्मोद्वर्तित दधिपरिणामो वा क्षीराद्वृद्धिमनुपलभ्यमानः कथं तद्वृद्ध्यभावसाध्ये निदर्शनं । १८० तिस कारण अंकुर आदि को वृद्धि का प्रभाव होजाना यह दोष हम जैनों पर लागू नहीं है। क्योंकि वीज से अतिरिक्त भी पदार्थ प्रकुर की वृद्धि में कारण होरहे हैं और भी जो प्रक्षेपकार जो यह कहा था कि जो जिसका परिणाम है वह उससे वृद्धिको धार रहा नहीं देखा गया है जैसे कि मादिये गये दूध का परिणाम दही. मथित श्रादिक उस दूध से बढे हुये नहीं पाये जाते हैं। एक सेर दूधका दही एक सेरसे अधिक परिमाण वाला नहीं होपाता है । इस प्रकार कहने पर तो हम जैन यो उत्तर कहते हैं कि उस अनुमानमें कहा गया हेतु वाधित हेत्वाभास है क्योंकि धर्मी और दृष्टान्तको ग्रहण करने वाले प्रमाणों करके उसके साध्य में वाधा प्राप्त होजाती है। देखिये यहाँ धर्मी तो वीज का परिगाम होरही अंकुर श्रादि अवस्था है किन्तु वह श्रंकुर श्रादि तो उस परिणामी वीज से वृद्धि को धार रहा ही देखा जा रहा है, ऐसी दशा में नहीं वृदि को धारने वाला इस साध्य का अनुमान किस प्रकार किया जा सकता है ? अर्थात्- "तत्परिणामत्व" हेतुसे "ततोवृद्धद्यभाव" इस साध्यको सिद्धि नहीं होमकती है जो प्रमाग पक्ष को जानेगा उसी समय वह साध्य में वाधा को उपस्थित कर देगा तथा दृष्टान्त भी वृद्धयभाव को नहीं साधने देता है । ठण्डे हो रहे दूध का तपाया जारहा दूध परिणाम कोई अन्य नहीं है अथवा उष्णता से उद्वर्तन कर दिया गया दही परिणाम भी कोई दूध से न्यारा नहीं है, भले ही वह दूध से को प्राप्त होरहा नहीं देखा जा रहा है वे दधि आदि भला वृद्धिप्रभावको साध्य करने में दृष्टान्त किस प्रकार होसकते हैं ? अर्थात् नहीं । भावार्थ- वीज का परिणाम अकुर ठीक है किन्तु वह वृद्धियुक्त देखा जा रहा है, हां क्षीर का परिणाम माना जा रहा दही भले ही बढता नही है किन्तु वह उस दूध का न्यारा परिणाम ही नहीं है, ठण्डा दूध. उष्ण दूध, दही, मथित, तत्र ये सब एक अपेक्षा दूध ही हैं, अतः परिणामी से न्यारे परिणाम के वृद्धद्यभाव को साधने में दृष्टान्त नहीं हो सकते हैं । तत्परिणामत्वादित्यसिद्धं च साधनं परिणामाभाव वादिनः । पराभ्युपगमात् तत्सिद्धौ वृद्धिसिद्धिरपि तत एव स्यात् सर्वथा विशेषाभावात् । तन्न वृद्धथभावात् परिणामाभाव: स्याद्वादिनां प्रति साधयितु ं शक्यः, परिणामाभावात् वृद्धयभावः सर्वथैकतवादिनः प्रसिद्धयत्येव जन्माद्यभाववदिति निवेदितप्रायं । दूसरा दोष यह भी है कि परिणामों के प्रभाव को कहने वाले वादियोंके यहां तत्परिणामत्व यह हेतु सिद्ध नहीं है, अतः प्रसिद्धहेत्वाभास भी है। पक्ष में हेतु नहीं ठहरता है । यदि कूटस्थ वादी
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy