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श्लोक-वातिक
कर रहा है, उन सज्जन के वावयों से उत्पन्न हुअा अागम ज्ञान जैसे प्रमाण है, उसी प्रकार सर्वज्ञ प्राम्नाय से प्रतिपादित आगम भी प्रमाण है, अतः अनुमान और पागम प्रमाण से वैशेषिकों का पक्ष वाधित हुआ।
पुनः वैशेषिक बोलता है कि सर्वगत होने के कारण प्रात्मा का स्वकीय प्रदेशों के संहार और विसर्प से सहितपना नहीं बनता है जैसे कि सर्वव्यापक प्राकाश अपने प्रदेशोंके संकोच या विस्तार को लिये हुये नहीं है। प्राचार्य कहते हैं कि यह तो नहीं कहना क्योंकि उस प्रात्मा का अव्यापकपना साधा जा चुका है, संसारी प्रात्मा अपने उपात्त शरीर के परिमाण है और मुक्त प्रात्मा चरम शरीर से कुछ न्यून परिमाणवाला है, अतः अव्यापक प्रात्मा के प्रदेशों का संकोच या विस्तार होसकता है।
येषां पुनर्वटकणिकामात्रः सहस्रधा भिन्नो वा केशाग्रमात्रोंगुष्ठपर्वप्रमाणो वात्मा तेषां सर्वशरीरे स्वसंवेदनविरोधः, नस्याशु-संचारित्वात्तथा संवेदने सकलशरीरेषु तथा संवेदनापत्तरेकात्मवादावतरणात । शक्यं हि वक्तु सकलशरीरेष्वेक एवात्माणुप्रमाणोप्याशु-संचारित्वात् संवेद्यत इति तत्राश्वेवाचेतनवप्रसंगोऽन्यत्र संचारणादिति चेत,शरीरावयवेष्वपि तन्मुतेवचेतनत्वमुपसज्येत तयुक्तस्यैव चोपशरीरैकदेशस्य सचेतनत्वोपपत्तेरिति यत्किचिदेतत् यथाप्रतीतिशरीरपरिमाणानुविधायिनो जीवस्याभ्युपगमनीयत्वात् ।
जिन प्रतिवादियों के यहाँ फिर आत्मा का परिमाण वट-वृक्ष के छोटे बीज की कनी बरोबर माना गया है अथवा हजारों प्रकार ( वार ) छिन्न भिन्न किये गये वाल के अग्रभाग प्रमाण अत्यन्त छोटा प्रात्मा माना गया है अथवा अंगूठे की पमोली बराबर आत्मा का परिमारण इष्ट किया है, उन पण्डितों के यहाँ सम्पूर्ण शरीर में आत्मा के स्वसम्वेदन प्रत्यक्ष होने का विरोध होगा। अर्थात्-छोटासा प्रात्मा शरीर में जहाँ होगा वहां ही आत्मा का स्वसम्वेदन प्रत्यक्ष होसकेगा, हाथ, पांव, पेट, मस्तक, सर्वत्र आत्मा का प्रत्यक्ष नहीं होसकेगा। दुःख, सुख भी छोटे से ही शरीर भाग में अनुभव किये जा सकेंगे, पूर्णशरीरावच्छिन्न प्रात्मा में नहीं। यदि वे पण्डित यों कहैं कि छोटी आत्मा का अत्यन्त शीघ्र संचार होजाने से तिस प्रकार सम्पूर्ण शरीर में ज्ञान, सुख, प्रादि का सम्वेदन होजाता है जैसे कि अत्यन्त शीघ्र भ्रमण कर रहे चाक पर लगगई काली बूद सब पोर दीख जाती कहने पर तो हम जैन कहते हैं कि तब तो मनुष्य, पशु, पक्षी, देव, वृक्ष, आदि के सम्पूर्ण शरीरों में तिस प्रकार शीघ्र संचार होजाने से एक ही आत्मा के सम्वेदन का प्रसंग पाजावेगा अतः अद्वतवादियों के समान एक ही प्रात्मा के प्रवाद का अवतार हुअा जाता है।
___यों निःसंशय कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण शरीरों में अणु के समान परिमाण को धार रहा एक ही आत्मा है, अणु-परिमाण वाला एक ही आत्माभी शीघ्र शीघ्र संचार करनेवाला होनेसे सम्पूर्ण शरीरों में संवेदा जाता है। अर्थात्-जैसे हाथी, बैल, मनुष्य, आदि प्रत्येक के शरीरमें वट कणिका या 'केशाग्र, अथवा अंगूठा के वरावर परिमाण का धारी छोटा प्रात्मा यहाँ, वहां, शीघ्र गमन करने के के कारण सम्पूर्ण शरीर में सम्विदित होजाता है, उसी प्रकार जगत् भर के प्राणियों का भी आत्मा . एक ही छोटा सा मानलिया जाय, बिजली की गति से भी अतीव शीघ्रगति होजाने से वह एक ही