SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचम-अध्याय १०७ नहीं माना जायगा तो भेद्यपना नहीं बन सकता है ( हेतु ) जो भी कोई पदार्थ सब से अन्त में जाकर उस घटादि अवयवों का पर्यन्त होगा वह परमाणु है, इस प्रकार परमाणु को ग्रहण करने वाले प्रमाण करके अनेक प्रदेशी पना वाधित होजाता है। यदि उस अन्तिम अवयव को अनेकप्रदेश वाला माना जायगा तो उसके परम अणुपनका विरोध होजावेगा। परम प्रणतो वही होसकता है जिससे फिर कोई छोटा अवयव न कभी हुआ, न है, न होगा, “ अणोरप्यणीयान् न परो वर्तते "। अष्टप्रदेशरूपाणुवादोऽनेन निवारितः। तत्रापि परमस्कन्धविदभावप्रसंगतः ॥२॥ इस उक्त कथन करके रूप--परमाणु के आठ प्रदेशों के प्रवाद का निवारण किया जा चका समझ लो । एक कारण यह भी है कि उस अणु के आठ प्रदेश मानने के प्रवाद में भी बड़े लम्बे चौडे स्कन्ध की प्रतीति होने के प्रभाव का प्रसंग पाता है। भावार्थ-पाठ दिशा, विदिशाओं, से दूसरे दसरे पाठ परमाणुओं का बंध होजाने की अपेक्षा जो परमाणु के आठ प्रदेश माने गये हैं, वहां भी एक देश या सर्व देश का विकल्प उठा देने पर परमाणु का प्रदेशों से रहितपना ही सिद्ध होता है। वस्तत: परमारण का एक ही प्रदेश है, और उस प्रदेश की व्य ञ्जन पर्याय वरफी के समान छह पैल वाली है. तदनुसार एक परमारण के साथ चार दिशाओं और ऊपर नीचे यों छह परमाणु बंधसकते हैं. अनेकान्त वाद में परमाण के एक देश या सर्व देश करके दूसरे परमाणु का बंध जाना घटित होजाता है। शक्ति की अपेक्षा छह अंश वाला परमारण साधा जा चुका है, परमारण के आठ अंश मानने वाले को ऊर्ध्व और अधः अंश अवश्य मानने पड़ेंगे इस में एक बड़ाभारी दोष यह भी होगा कि आठ पैल वाले अनेक पदार्थ छिद्र रहित होकर सघन बन्ध नहीं सकते हैं जैसे कि गोल गोल पदार्थों का लिटरहित पिण्ड नहीं बन सकता है, तथा दिशा विदिशाओं सम्बन्धी आठ पैल वाले पदार्थ का ऊपर और नीचे का पैल बहुत बड़ा होजाता है किन्तु परमाणु के अश एक से होने चाहिये यदि परमाण के समतल में छह पैल माने जांय और ऊपर नीचे दो पैल मानकर यो पाठ प्रदेशों की कल्पना की जाती तो यद्यपि छह पैल वाले पदार्थों का अच्छे ढंग से समतल में छिद्ररहित बन्ध होसकता है किन्त ऊपर नीचे के पैल बहत बड़े होजाने से अंशों में छोटापन, बड़ापन आजाता है परमारण को घन समचतरस ( वरफी के समान ) मानने पर ये कोई आपत्तियां नहीं आती हैं अतः परमाण के आठ प्रश या दश अंश अथवा गोल आकार का मानना ठीक नहीं जंचता है। परमाणुनामनेकप्रदेशत्वाभावे सर्वात्मनैकदेशेन च संयोगे पिण्डेपि अणुमात्रप्रसक्तेः सावयवत्वेऽनवस्थाप्रसंगाच परमस्कंधस्य प्रनीतिविरोधादष्टप्रदेशरूपाणभिद्यमानपर्यन्तः सर्वदा स्वयमभेधः सिद्धयति न पुनरनंशः परमाणु स्तस्य बुद्धया परिकल्पनादिति केषांचिदष्टप्रदेशरूपाणवादः सोप्यनेनैव प्रदेशपरमाणु स्कंधस्य वचनेन विचारितो द्रष्टव्यः, रूपाणोरष्टप्रदेशस्य सर्वदाप्यभेद्यन्वायोगात् । तथाहि--भेद्यो रूपाणुः मूर्तन्वे सत्यनेकावयवत्वात् घटवत् । नात्र हेतोराकाशादिभिरनेकांतो मूर्तिमत्त्वे सतीति विशेषणात्तेषाममूर्तत्वात् । ततः परमाणुरेकप्रदेश एव भिद्यमानपर्यन्तः सिद्धः ।
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy