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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
किसीको उपलम्भ होता नहीं । अनुमान या आगमसे भले ही उनको जानलो । सर्वज्ञका निषेध करनेवाले और इन्द्रियप्रत्यक्षको ही प्रमाण माननेवाले चार्वाकको तो दूसरेकी चित्तवृत्तियोंका कथमपि प्रत्यक्ष नहीं हो सकता है । किन्तु वे हैं तो सही, चाहे उन्हें भूतकदम्ब कहो या सादि चैतन्य मानो भले ही अनित्य आत्मा कहते फिरो। अकेले चार्वाकसे अतिरिक्त उसके माता, पिता, गुरु, अथवा संसारके अन्य प्राणी और उनकी आत्मीय वृत्तियां सभी मर तो नहीं गयी हैं । अतः नास्तिव साध्यके नहीं रहते हुये अनुपलम्भ हेतुके वर्तजानेसे अनैकान्तिक दोष लग जाता है ।
तथा पर्यायार्थादेशात् पूर्वपूर्वपर्यायहेतुकत्वादुत्तरोत्तरात्मपर्यायस्याकारणत्वादित्ययमप्यसिद्धो हेतुः।
तथा आत्मा बालक होकर युवा होता है युवा अवस्थाको छोडकर अर्द्धवृद्ध होता है, अध बूढी अवस्थाको कारण मानकर पीछे वृद्ध हो जाता है, अतृप्त आत्मा भोजन कर लेनेपर तृप्त हो जाता है। मूर्ख पुरुष अभ्यास करते करते पण्डित बन जाता है, रोगी जीव औषध सेवन करता हुआ नीरोग बन बैठता है। मनुष्य मरकर देव हो जाता है। देव पुनः तिर्यंच हो जाता है। इस प्रकार पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा कथन करनेसे पहिली पहिली पर्यायोंको हेतु मानकर उत्तर उत्तरवर्ती आत्माकी पर्यायोंका उत्पाद होता रहता है । इस कारण चार्वाककी ओरसे दिया गया कारणरहितपना यों यह . हेतु भी पक्षमें नहीं बर्तनेसे असिद्ध हेत्वाभास है, अर्थात्-पर्याय दृष्टिसे देखनेपर आत्माकी सभी बाल्य, कुमार, देव, मनुष्य, संसारी मुक्त, आदि पर्यायें हीं तो दीख रहीं हैं । उन पर्यायोंकी पूर्व समयवर्ती पर्यायें कारण हैं अतः आत्मा कारणोंसे सहित होगया । कारणरहितपना हेतु पक्षमें नहीं रहा ।
द्रव्यार्थादेशाविरुद्धश्च । तथाहि । अस्त्यात्मा अनाद्यनंतोऽकारणत्वात् पृथिवीत्वादिवत् । मागभावेन व्यभिचार इति चेन्न, तस्य द्रव्यार्थादेशेऽनुपपद्यमानत्वादनुत्पादव्ययात्मकत्वात् सर्वद्रव्यस्य । पृथिवीद्रव्यादिभ्योऽतिरभूतस्तु प्रागभावः परस्याप्यसिद्ध एवान्यथा तस्य तत्त्वांतरत्त्वप्रसंगात् ।
चार्वाकोंके अकारणत्व हेतुको असिद्ध बताकर अब उसे विरुद्ध दोषयुक्त भी बताते हैं कि द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा कथन करनेसे यह अकारणत्व हेतु विरुद्ध भी है । इसी बातको ग्रन्थकार तैसा प्रसिद्ध करते हुये कहते हैं कि आत्मा ( पक्ष ) अनादि कालसे अनन्त कालतक ठहरनेवाला द्रव्य है ( साध्य ) अकारणपना होनेसे ( हेतु ) पृथ्वीत्व या पृथिवी तत्त्व, जलतत्त्व, आदिके समान ( अन्वयदृष्टान्त ) अर्थात्-पृथिवीत्व जाति या चार्वाकोंके यहां माने गये पृथिवीतत्त्व, जलतत्त्व, तेजस्तत्त्व, वायुतत्त्व, ये चार तत्त्व अनादि अनन्त नित्य हैं। उन्हीके समान चेतन आत्मा तत्त्व नित्य है । इस अनुमान द्वारा अकारणत्व हेतुसे आत्माका नित्यपना साध दिया है। पहिले चार्वाकोंके अनुमान द्वारा आत्माके नास्तित्व साधनेमें प्रयुक्त किया गया अकारणत्व हेतु तो नास्तित्व साध्यसे विपरीत हो रहे नित्यत्व या अनाद्यनन्त अस्तित्वके साथ व्याप्तिको रखता है । अतः विरुद्ध हेत्वाभास हुआ । यहां
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