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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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स्कारक प्रसंग दिया गया है। ग्यारह सौ वीस योजन पृथिवीकी चौडाई या इससे कुछ कमती बढती नहीं सधती है। यहां नदियोंके प्रभव स्थान और प्रवाह मार्ग अनुसार भूगोलका अच्छा निराकरण किया गया है । और भी अनेक युक्तियां दी हैं। काल आदिके वश भूमीके नीचे, ऊंचे आकार भी नोंके यहां माने गये बताये है। जो मनुष्य कुयेमें नीचे ठहरा हुआ है। उसको दुपहरके समय घण्टे दो घण्टे का ही दिन भासता है । गुफा या तिरछी भूमिमें निवास कर रहा मनुष्य वर्षों या महीनोंतक सूर्य दर्शन नहीं कर सकता है। सूर्यके उत्तरायण या दक्षिणायन होनेपर अनेक स्थलोंपर विभिन्न जातिके दिन रात हो जानेका प्रकरण मिल जाता है । जहाजका ऊपरला भाग दिखनेसे या उदय, अस्त, होनेकी वेलापर भूमीसे लगे हुए सूर्यका दर्शन होनेसे पृथिवीको गोल मानना कोरी बालबुद्धि है। क्या आकाशको या स्वच्छ जलको नीला देख लेनेसे उनमें नीलरंग घुला हुआ मान लिया जावेगा? कभी नहीं। देखो हम लोगोंकी आंखोंमें भी कतिपय दोष है जिससे कि नाना प्रकार भ्रान्तियां हो जाती है। दूर देशतक ऊंचा उडता जा रहा पक्षी भी हमें नीचे उतरता हुआ सारिखा दोखता है। किन्तु ऐसा नहीं है । दस पांच कोस लम्बे चौडे एक तिकोने या चौकोने चोंतरापर बीचमें खडा होकर देखनेसे चारों ओर गोल दीखता है। किन्तु एतावता वह चौंकोर चोतरा कथमपि गोल नहीं हो जावेगा। यदि पृथिवी गोल घूमती हुई मानी जावेगी तो पक्षी उडकर अपने घोसलेपर नहीं आ सकेगा। क्योंकि उसकी छोडी हुई पृथिवी तबतक सैंकडो मील दूर घूम जावेगी। इसके लिए पचास मील या इससे भी कमती बढती वायका भी भ्रमण पथिवीके साथ स्वीकार करोगे तो वेगसे चल रही वायके साथ धुआं या आककी रूईको क्या दशा होगी। मसाल या दीपककी सीधी लौ नहीं उठ सकेगी। टिमटिमाता हुआ दीपक झट बुझ जायगा। तोपसें निकले हुए बलवान् गोलेको पथिवी अपने साथ वायुकी सहायतासे ले जाय । किन्तु फफूंदा या छोडे हुए वारूदके वाणके फुलिंगोंपर अपना प्रभाव नहीं जमा देवें यह आश्चर्य है । जो वायु रूई या फफूंदेको पृथिव के साथ पूर्वको ले जाने में समर्थ नहीं है। वह वेगसे दौड रहे डेल या गोलीको कथमपि पृथिवी के साथ नहीं ले जा सकता है। कदाचित् हुए स्वल्प भूकम्पसे शरीर, हृदय, मस्तिष्कमें चक्कर आने लगते हैं। जो इतने प्रबल भूमि भ्रमणसे मानव, पशु, पक्षिओंकी क्या दशा होगी ? इसका अनुमान लगाना ही भयंकर है। आकर्षण शक्तिका भी खण्डन हो जाता है। समद्रका इतना लम्बा चौडा जल केवल आकर्षण शक्तिसे नहीं डटा या चुपटा रह सकता है। हरिद्वार से कलकत्तेको जारही गंगा नदी आकर्षण शक्तिवश गोल पृथिवी पर उलटी भी बह जाय तो कोन रोक सकता है। गोल पृथिवीपर जैसे हरिद्वारसे कलकत्ता नीचा है। उसी प्रकार कलकत्तंसे हरिद्वार भी नीचा सम्भवता है। अमेरिकासे नीचे भारत वर्षका या भारतवर्षसे नीचे अमेरिकाका आकर्षणवश पृथिवीसे सुपटा रहना कहना असम्भव है। गुरुत्व धर्मके वश भारो पदार्थ सब नीचे गिर पडेंगे । चुम्बक या लोहेका दृष्टान्त सर्वत्र पुद्गलोंमें लागू नहीं होता है । एक वृक्षसे सेवफलका पृथिवीपर गिरना देखकर भूमि में आकर्षण शक्तिकी न्यूटन पंडितद्वारा कल्पना करना बच्चोंका खेल है । हम आकर्षणका खण्डन नहीं