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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
- ननु घटादीनां विचित्रा स्थितिरिष्यते । कर्मानपेक्षिणां तद्वद्दे हिनामिति ये विदुः ॥ ३ ॥ तेननभिज्ञा घटादीन / मपि तद्भोक्तृकर्मभिः । स्थितेर्निष्पादनाददृष्टे कारणव्यभिचारतः ॥ ४ ॥
पौद्गलिक सूक्ष्म कर्मोंको नहीं माननेनाले चार्वाक यहां स्वकीय पक्षका अवधारण करते हुये आमंत्रण करते हैं कि जिस प्रकार कर्मोंके सम्बन्धकी नहीं अपेक्षा रख रहे घट, पट, शकट आदि जड पदार्थोंकी विचित्र स्थितियां हो रहीं इष्ट कर लीं जाती हैं। उसी प्रकार शरीरधारी प्राणियोंकी भी कर्मोंकी नहीं अपेक्षा रखती हुई जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट, आथुः स्वरूप स्थितियां बन जाओ । इस प्रकार जो नास्तिक समझ बैठे हैं, आचार्य कहते हैं कि वे चार्वाक विचारे कार्यकारणभावकी पद्धतिको स्वल्प भी नहीं समझते हैं। क्योंकि घडा, कपडा, छकडा आदिको भी विचित्र स्थितियोंका उनके भोगनेवाले जीवोंके कर्मोंकरके उत्पादन किया जाता है । लोक में आबालवृद्ध प्रसिद्ध देखे जा रहे परिदृष्ट कारणों का व्यभिचार देखा जाता है। अर्थात् एक घडा दो दिन भी चलता है। जब कि उसी कुम्हार उसी मट्टी आदि कारणोंसे निष्पन्न हुआ दूसरा घडा पांच वर्ष में भी नहीं फूटता है । चाक, अवा, खान, कुलाल, जल, अग्नि, थे 'दृष्ट कारण जब वे ही हैं, तब फिर दो घडोंकी " टिकाऊ स्थिति में इतना बडा अन्तर क्यों दीखता है ? इससे सिद्ध है कि घडोंका क्रय विक्रय करनेवाले या उसके शीतल जल को पीनेवाले अथवा फूटने पर दवमिचकर दुःख भुगतनेवाले जीवों के पुण्य, पात्र, अनुसार ही जड पदार्थों का भी न्यून अधिक काल तक ठहरे रहनेका अन्वय व्यतिरेक है। इसी प्रकार कपडे चौकी, घडियां, मशीनों, गृहों आदिका स्वल्पकालतक या अधिक कालतक टिके रहने में अन्तरंग प्रधानकारण उन पदार्थोके साक्षात् या परम्परया उपभोग करनेवाले जीवोंका अदृष्ट ही समझा जाता हैं ।
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सूक्ष्मो भूतविशेषश्रेव्यभिचारेण वर्जितः । तद्धेतुर्विविधं कर्म तंत्रः सिद्धं तथाख्यया ॥ ५ ॥
यदि चार्वाक यों कहे कि पृथिवी, जल, तेज, वायु इन स्थूल भूतोंका व्यभिचार भले घटादिकी न्यून अधिक स्थिति होने में आवे किन्तु व्यभिचार दोषसे वर्जित होरहा सूक्ष्म भूत विशेष उन घटादिकोंकी विचित्र स्थितिओंका हेतु मान लिया जाय । यों कहने पर तो ग्रन्थकार कहते हैं कि तब तो बहुत अच्छा है । वही सूक्ष्म कार्मण वर्गणाओंका बना हुआ ज्ञानावरण, असाता, साता, शुभगोत्र आदि नाना प्रकार कर्म ही तो हम जैनों के यहां उन चेतनात्मक या अचेतनात्मक पदार्थोंका प्रेरक हेतु हो रहा सिद्ध है । तिस प्रकार सूक्ष्मभूतविशेष इस नामक