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________________ तत्वाचिन्तामणिः AAMAawwwwww Awarenes www दिया । वह झट पी गया। इस अवसरपर सूर्य और चन्द्रमाने पैशून्य (चुगली ) कर दिया। विष्णुने क्रोधवश हो करके राहुका शिर काट डाला । किन्तु वह अमृत पी चुका था। अतः मरा नहीं। इसी कारण सूर्य और चन्द्रमाको राहु और केतु प्रस लेते हैं । कोई राहुका आकार सर्प सरीखा मानते हैं । किन्तु ये सम्पूर्ण प्रवाद मिथ्या हैं । ऐसे उन राहु या केतु करके ग्रहों द्वारा उपराग होना नहीं बनता है। वराहमिहर, आदि विद्वानोंने भी ऐसा ही कहा है। बृहत्संहितामें लिखा है, " एवमुपरागकारणमुक्तमिदं दिव्यद्यग्मिराचार्यः राहुरकारणमस्मिनित्युक्तः शास्त्रसद्भावः "। कथं पुनः सूर्यादिः कदाचिद्राहुविमानस्याग्भिागेन महतोपरज्यमानः कुंठविषाणः स एवान्यदा तस्यापरभागेनाल्पेनोपरज्यमानस्तीक्ष्णविषाणः स्यादिति चेत्, तदाभियोग्यदेवगातेविशेषात्तद्विमानपरिवर्तनोपपत्तेः । षोडशभिर्देवसहस्रैरुह्यते सूर्यविमानानि प्रत्येकं पूर्वदक्षिणोचरापरभागात् क्रमेण सिंहकुंजरवृषभतुरंगरूपाणि विकृत्य चत्वारि देवसहस्राणि वहंतीति वचनात् । तथा चंद्रविमानानि प्रत्येकं षोडशभिर्देवहस्रैरुह्यते, तथैव राहुविमानानि प्रत्येकं चतुर्भिर्देवसहजैरुह्यते इति च श्रुतेः।। जैनोंके ऊपर कोई आक्षेप करता है कि यदि प्रहोपरागकी व्यवस्था यों है तो फिर बताओ कि सूर्य आदिक कभी कभी राहुविमानके उरले बड़े भाग करके उपरागको प्राप्त हो रहे सन्ते तिस प्रकार मौथरे सींग सारिखे आकारवाले कैसे हो जाते हैं ? और वही सूर्य आदिक अन्य समयोंमें उस राहुके परले छोटे भागकरके उपरागको प्राप्त हो रहे सन्ते भला पैने सींगसारिखे आकारवाले कैसे दीखने लग जाते हैं ! बताओ, यों कहनेपर तो आचार्य समाधान करते हैं कि उन अवसरोंपर उन विमानोंके वाहक आभियोग्य जातिके देवोंकी गति विशेषसे उन सूर्य आदि विमानोंका परिवर्तन बन नाता है । देखो, सोलह हजार देवों करके सूर्य विमान धारे जाते और चलाये जाते हैं। प्रत्येक सूर्यको एक एक पूर्व, दक्षिण, उत्तर और पश्चिम भागोंसे क्रम करके सिंह, हाथी, बैल, और घोडके रुप अनुसार विक्रिया कर चार चार हजार देव धारे रहते हैं, ऐसा शास्त्रोंका वचन है। यानी पूर्वकी ओर चार हजार देव सिंहका रूप धारण कर सूर्य को चला रहे हैं । नियत गतिसे इधर उधर नहीं होने देते ह । दक्षिण दिशामें हाथियोंका रूप धारे हुये चार हजार आभियोग्य देव सूर्यको नियतगति अनुसार ढो रहे हैं। उत्तरमें बैलका रूप धार रहे चार हजार देव सूर्य विमानको नियत व्यवस्था अनुसार लादे हुये हैं। तथा पश्चिम भागसे अश्वेषधारी धार सहन देव सूर्यको डाटे हुये हैं। मनुष्यों द्वारा चलायी गयी पर्वतीय गाडीको जिस प्रकार चारों ओरसे ला कर मनुष्य ढोते हैं, उसी प्रकार सूर्यविमानोंकी व्यवस्था है । तिसी प्रकार चन्द्रविमान भी प्रत्येक सोलह हजार देवों करके ढोये जाते हैं । उपही प्रकार राहुविमान भी एक एक बार हजार देवों कर पारे जाते है।
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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