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________________ ५७० तत्त्वार्यलोकवार्तिके सौ बीस योजन मेरुसे दूर अप्राप्त होकर प्रकाशता है, तब तो दिनमें अठारह मुहूर्त हो जाते हैं । आधा मेरु ५००० योजनका है । और सूर्य १८० योजन भीतर आ गया है। दोनों ओर छह सौ चालीस योजनोंसे अधिक निन्यानवै हजार ९९६४० योजन अभ्यन्तर बीथीकी चौडाई हो जाती है । " विक्खम्भवग्गदहगुण करणी वदृस्स परिरयो होदि ” इस नियम अनुसार कुछ अधिक तिगुनी अर्थात्-तीन लाख पन्द्रह हजार नवासी ३१५०८९ योजन इसकी परिधि है । एक सूर्य साठ मुहूतमें जब इतनी परिधिका भ्रमण करता है, तो एक मुहूर्तमें कितनी परिधिको पूरा करेगा ? इस त्रैराशिक विधिके अनुसार पांच हजार दो सौ इक्यावन योजन और एक योजनके उन्तीस बटे साठि भाग अधिक एक मुहूर्तकी गतिका क्षेत्र होना सिद्ध हो जाता है । सो यह सूर्यके सबसे भीतरली गलीपर घूमनेके दिन अठारह मुहूर्त यानी चौदह सही दो बटा पांच घन्टे प्रकर्षपर्यन्तको प्राप्त हो रही दिनकी वृद्धि है । और इसी दिन बारह मुहूर्तकी रात है । अतः यह रातकी सबसे बढी हुयी हानि है। जो कि सूर्यकी गति विशेषसे हो रही उसके अभ्यन्तर मण्डलपर आनेसे सिद्ध हो जाती है । ___ यदा च सूर्यः सर्वबाह्यमंडले पंचचत्वारिंशत्सहस्रत्रिभिश्च शतैत्रिशैर्योजनानां मेरुमप्राप्य भासयति तदाहनि द्वादशमुहूर्ताः। षष्ठयधिकशतषट्कोत्तरयोजनशतसहस्रविष्कंभस्य तत्रिगुणसातिरेकपरिधेः तन्मंडलस्य पंचदशैकयोजनषष्टिभागाधिकपंचोत्तरशतत्रयसहस्रपंचकपरिमाणगतिमुहूर्तक्षेत्रत्वात् सैषा परमप्रकर्ष पर्यन्तप्राप्ता तावहिवाहानिवृद्धिश्च रात्रौ सूर्यगतिभेदाद्वाह्याद्गनखंडमंडलात् सिद्धा। तथा जिस समय सूर्य जम्बूदीपकी वेदीसे समुद्रकी ओर तीन सौ तीस अडतालीस बटे इकसठि योजन अधिक हटकर सबसे बाहरके मण्डलपर पैंतालीस हजार तीन सौ तीस ४५३३० योजनों करके मेरुको अप्राप्त होकर प्रकाशता है, तब दिनमें बारह मुहूर्त हो जाते हैं । एक लाख छह सौ साठ १००६६० योजन बाहरली वीथीकी चौडाई है। दोनों ओरके पथ व्यास पिण्ड छयानवें वटे इकसठ योजनकी विवक्षा नहीं की गयी है। उस बाहरले मण्डलकी इससे कुछ अधिक तिगुनी यानी तीन लाख अठारह हजार तीन सौ चौदह ३१८३१४ योजन परिधि है। साठि मुहूर्तमें इतनी परिधिको पूरा घूमता है, तो एक मुहूर्तमें सूर्य कितना घूमेगा ? इसका उत्तर एक योजनके साठि भागोंमें चौदह या पन्द्रह भागसे अधिक पांच हजार तीन सौ पांच योजन है । इतने योजन परिमाणवाला एक मुहूर्तकी गतिका क्षेत्र होता है । सो यह तो परमप्रकर्षके पर्यन्तको प्राप्त हो रही दिनकी हानि है। अर्थात्-बाहरकी गलीमें घूमनेपर बारह मुहूर्त यानी ,३ घन्टाका दिन होता है। तथा यह रातमें सबसे बंढी हुयी वृद्धि है । अर्थात्---इस दिन सबसे बडी अठारह मुहूर्तकी रात होती है। जो कि सूर्यकी गति विशेष अनुसार पांचसौ दस योजन सम्बन्धी आकाश खण्डके बाहरले मण्डलसे हो रही सिद्ध हो जाती है।
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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